पे
दक्षिण अफ्रिका-का सत्यामह ,
या सावघानी हो सकती है, जिससे,वे- फ़िर से ज् होने पाणे ! इसलिए मेरी तो यही सलाह है कि जिस उत्षमन-में हम जा गिरे हैं,उसे धीरज के साथ सुलमांव | हमे तो अब यही विचार करना चाहिए कि यदि हमे फिर से लड़ना पड़ा तोआगे क्या करना
चाहिए ? भर्थात् इस बात का विचार छोड़कर कि दूमरे लोग क्या
करंगे हमें तो यही सोचना चाहिए कि प्रत्येक सत्याप्रही स्वयं क्याकरेगाया क्या कर सकता है। मेरा तोयह खयाल हैकि
यदि,हम सब्र इतने सच्चे बने रहेंगे तो दूसरे भो वैसे हो हृढ रहेंगे। अथवा यदि उनमे किसी प्रकार की कमजोरी आ भी गई तो
वेहमारा उदाहरण लेकर अपनी उस दुवेज्ञता को दूर कर देंगे।” मुझे माछूम होता है, जिन भाइयों ने पुन: लडाई चला सकने
के विपय मे, शुभ हेतुसे ही ताने के रूप मे श्का प्रकट की थी
देभी समझ गये | इन दिनों काछलिया प्रतिदिन अपनी अ्रपू्व
संत्यप्रियता तथा निश्चय का परिचय दे रहे थे । तमाम बातों मे
फमसे कम थोलकर वह अपना निश्चय जाहिर कर देते, भौर उस पर शअडे रहते। मुझे तो ऐसा एक भी प्रसंग याद नहीं,
जिसमे उन्होंने दुवतनता जाहिर की हो, अ्रधत्रा अन्तिम परिएाम के विषय मे कोई शह्दा ही प्रकट की हो । शीघ्र ही ऐसा श्रवमर आया, कि जब ईसप मियाँ ने तूफानी समुद्र मे करुंधार बने रहने से इन्कार कर दिया । ठम समय सबने एक मत से काछलिया
का स्वागत किया | तब से लगा कर आखिरी घड्टी, तक उन्होंने
पतवार पर से अपना हाथ नहीं हटाया। और यह करते हुए
उन्देनि उन तमाम झुमीवत्तें का निश्चित और निर्भेय हो कर सामना जिया, जिनरो शायद ही अन्य कोई सहन कर सकता।
पन्नों युद्द आगे चढ़ने लगा त्यॉनस्पों ऐसा समय भी श्राने लगा कि फिनने ही होगों के ज्िए जेल मे चत्ते जाना एक आसान