पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२८४

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क्षनरल सादस का विश्वासधात

काम हो गया। क्योंकि वहाँ उन्हें आराम मिलता, और बाहर रहना इससे कहीं भ्रधिक मुश्किल था। यहाँ तो हर बात का

दम विचार करके उसकी उचित व्यवस्था करनी पड़ती, और अनेक मनुपष्णें कोसमकता पदता। यह सब जेल में जाने फी श्रपेत्ञा बहुत ज्यादा मुश्किल था। अब अबसर पाकर गोरे

कर्जदारों ने वाछुलिया सेठ को श्रपने शिकंजे में पकडा | कई भारतीय व्यापारियों फोअपने व्यापार के लिए गोरे व्यापारियों की कोठियों पर अचलम्पित रहना पछत्ता था। वे लाखों रुपये। का माल त्रिना फिसी प्रडरार की रहन के फेचल भारतीय व्यापारियों के विश्वास पर दे दिया करते है । सचमुच,

भारतोय व्यापार की श्रमाणिकता का यह्‌ ए+ सुन्दर नमूना हैकि वे वहाँ पर इतना विश्वास सम्पादन कर सके हू! कादेलिया सेठ

के साथ भी कई अंग्रेजी फर्मों काइसी प्रफार का लेन-देन का सम्बन्ध था। भत्यज्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से, क्रिप्ती प्रकार सरकार की ओर से इशारा मिलते ही, ये व्यापारी काहल्िया सेठ 'से अपनी वे सब मुद्रायं मॉगने लगे, जो उनकी तरफ लेना निऊत्नती थीं। उन्होंने तो काक्ृज्ञिया सेठ को घुलवा कर यों तक कहा कि धयद्रि आप इस युद्ध सेअपने को अत्ञग रक्खें तब तो आपको उत् मुद्राओं के लिए छुछ भी जल्दी करने की आवश्यकता नहीं है। अगर आप यह न करे तो हमें यह भय हमेशा रहेगा कि सरकार

आपको न जाने क्रिस वक्त पकड़ लेती है। और यदि ऐसा ही

“हुआ तो फिर हमारी मुद्रा्ों का क्या होगा ! इसलिए यदि इप्त युद्ध मेसे अपन[ द्वाथ हदा लेना आपके लिए किसी प्रकार

असंभव हो,तो दमारी मुद्रा भापको इसी ,समय लौटा देली

चाहिए” इस वीर पुर॒प ने उत्तर,दिया--“युद्ध तो मेरी व्यक्तिगत

बसु है। मेरे व्यापार केसाथ उसका कोई सम्नन्ध हीं है।अपने