जनरल स्मद्स का विश्वासवात
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जिए मजबूर करे, ओर यदि फाछुलिया इसे मंजुर न कर तो उनसे पूरेसौ के सो वसूल करें। पर इन दो मेसे उनका एक भी हेतुसिद्धनहुआ इसका ते उल्दे एक विपरीत ही परिणाम हुआ। एक, प्रतिष्ठित भारतीय व्यापारी कोइस तरह नादारो का; स्वागत
करते हुए देख कर, गोरे व्यापारी चकित हो गये, और हमेशा के लिए शान्त हो गये। परन्तु इधर एक सान् के अन्दर ही
काइलिया के माल में से हो गोरे व्यापारियों को पूरे सो के सो मिल गये | दक्षिण अफ्रिका में दिवालिया देनदार से लेनदर की
पुरे सौकेसोमिल जाना यह अपनों जानकारी मे। मेरा पहला ही अनुभव था ।युद्ध शुरू दो गया था । पर फिर भी इससे गोरे व्यापारियों मेकाछुलिया का सम्प्रान वेहद बढ़ गया। आगे
चलकर युद्ध-काल्न मे उन्हीं व्यापारियों नेकाहुलिया को मनमानों
»माके देने केलिए अपनी तत्परता दिखाई । पर काछुलियां का वज्ञ तोदिन-व-द्नि,वढ़ता दी जा रद्द था। युद्ध के रहस्य को
भी चह भल्ती भाँति समर चुक्रे थे।और यह तो कोन कद्द सकता था कि युद्ध शुरू होने केबाद वह कितने रोज चलेगा | इसलिए
नादारी के वाद हमले तो यहो निश्चय कर लिया कि हुम्बे चौड़े व्यापार की मकट में पड़ना दी नहीं । उन्होंने भी निश्चय कर लिया कि अब, जब तक युद्ध समाप्त नहीं होता, उतता हू व्यापार
किया जाय कि- जिससे एक गरीब मनुष्य अपना' निर्वाह कर
सके, इससे उ्यादा नहीं। इमलिए गोरों ने जो अ्भिवचन दिया
उसका-उपयोग उन्होंने नहीं किया । काछल्िय। सेठ के जीवन,क्ी
जिन घटनाओं का/वर्णन मैंकर चुका हूँ, वे कमिटी की सीरटिंग कें बाद,हुईहों,सो बात नहीं। पर मैने उन्हें यहाँ पर इसीलिए लिख देना ठीक समझा ,क्रि उनको कहीं एक ही बारः देदेना योग्य
होगा। अगर तारीख बार देखा जाय तो दूसरा युद्ध शुरू होने पर