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दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह
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हैं। कितने ही लोग गाडियाँ हाँककर अपना गुजर कर लेते हैं। कुछ लोगों ने उच्च शिक्षा भी पायी है। उनमे एक डाक्टर अब्दुल रहमान केपटाउन में विख्यात हैं। वे केपटाउन की पुरानी धारासभा में भी पहुँच पाये थे। नवीन विधान के अनुसार मुख्य धारासभा में जाने का यह अधिकार छीन लिया गया है।

वलन्दा लोगो का वर्णन करते हुए बीच में मलायो लोगों का भी कुछ वयान आ गया। अथ जरा यह देखें कि वलन्दा लोग किस तरह आगे बढे? यह कहने को नम्रत नहीं कि बलन्दा लोगों को कहते हैं। ये लोग बहादुर लडयेये थे और हैं। साथ ही उतने ही कुशल खेतिहर थे और हैं। उन्होंने देखा कि हमारे आस-पास का मुल्क खेती के बहुत लायक हैं, उन्होंने देखा कि हाँ के निवासी साल में थोड़े ही समय काम करके अपनी गुजर आसानी से कर सकते हैं तो फिर उनसे मजदूरी क्यों न करायें? बलन्दा के पास अपना हुनर था, बन्दूक थी, और ये यह भी जान सकते थे कि मनुष्यों तथा दूसरे जीवधारियों पर किस प्रकार अपना काबू करें। उनका यह विश्वास था कि ऐसा करने में धर्म की कोई बाधा नहीं है। अतएव अपने कार्य के औचित्य के विषय में जरा भी शकाशील हुए विना उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के निवासियों की मजदूरी के बल पर खेती वगैरा करना शुरू किया। जिस प्रकार वलन्दा दुनिया में अपना फैलाव करने के लिए अच्छी जमीनें खोज रहे थे उसी तरह अग्रेज लोग भी मन की फिराक में थे। धीरे-धीरे अग्रेजभी वहाँ आये। अग्रेज और डच चचेरे भाई तो उई हैं। दोनों की खासियत एक, लोभ एक। जब एक ही कुम्हार के मटके एक जगह जुट जाते हैं किसी टकराते भी है, फूटते भी हैं। इसी प्रकार वे दोनों जातियाँ अपना पाँव पसारते हुए और धीरे-धीरे हबशियों पर