पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२९८

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ऐच्डिक परवाने की होती

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पेरवाली कढ्ाइयोँ रखते हैं. जो आवश्यकतानुसार छोटी या बड़ी भी होती हैँ। इसी तरह की बढ़ी से बड़ी एक कदाई, जो बहद्दों मिल सकी, परवाने जलाने के लिए एक भारतीय व्यापारी की दूकान से माँग लाये थे, और उसे एक कोने सेऊँचे मंच पर रखवा दिया गया था। सभा धुरू करने का समय हुआ, कि इतने ही मे एक रय्य॑-

सेचक वाई-सिकल पर चढ़ कर आ पहुँचा। उसके हाथ में तार था। वह सरकार का उत्तर था। उसमें कौम के निश्चय पर दु:ख प्रकट फरते हुए यह ज्ञाहिर किया था कि सरकार अपने निश्चय को नहीं बदल सकती। तार सभा को पढ़ें कर सुना दिया गया | सभा ने उसका बड़ा स्वागत किया, सालों यदि सरकार

निश्चय-पत्र की मॉग को मंजूर कर लेती, तो परवानों की द्ोली जलाने का शुभ अवसर हाथ से जाता रहता | यह कहना महा फठिन हैकि इस हपे को योग्य कहा जाय या अयोग्य ) इसके

उचित अनुचित का निर्णय तोतब तक नहींदिया जासकता, जब तक

कि दम सरकार के इस उत्तर का करतल-ध्वनि से स्वागत करने वाज्षों के द्ेतु कोनहीं जान ल्षेते |हों, इतना तो जरूर कहा जा सकता हैकि यह प्रसन्नता सभा के उत्साह की सुन्दर निशानी थी।

सभा अपनी शक्ति को कुछ-बुछ पहचानने लग गई थी। अस्तु। सभा को सावधान किया। समा का काये शुरू हुआ |अध्यक्ष ने

परिस्थिति की समझाया । प्रसंगोचित प्रस्ताव स्वीकृत किये गये ।

जो भिन्न-भिन्न परिस्थितियाँ पैदा हो गई थीं उन सबको मैंने सममाया और कट्दा 'जिन भाइयों ने अपने परबाने जलाने के

लिए दिये हूँ,यदि वे चाहें तो उन्हें घापिस ले सकते है। परवानों को जला देना मात्र कोई अपराध नहीं है ओर न केवल यह कर

लेने भर से उनकी इच्छा पूरीहो सकती है,जो जेल्न जाना चाहते

हैं। परवाने जला कर तो हम केवल अपना यह निश्चय जादिए

हा