कोम पर एक नया आरोप
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पड़ता है । जिन मित्रों केसमत्त जनरल स्मट्स ने अपने अनुभव की बात कह्दी थी, पे मुझे भी भाँति जानते थे। इसलिए उच्च पर जनरल स्क्षट्स की धारणा के ठीक विपरीत हीप्रभाव पडा ।उन्होंने न तो मेरा त्याग किया और न युद्ध का ही । इतना ही नहीं, वल्कि
अब तो वे और भी श्रधिक दिलचस्पी के साथ सहायता करने लग गये | कौम को भी आगे चलकर यही अनुभव हुआ कि यदि चरती के कानून का हस त्ञोग सत्याग्रह भे समावेश न करते तो में भार मुप्तीवत का सामना करना पड़ता |
अनुभव मुझे यह शिज्ञा देता है कि जिसे में 'बृद्धि का नियम? “कहता हूँवह प्रत्येक शुद्ध लडाई में ज्ञाग होता है परल्तु
सत्याम्रह के विषय मे तो में उसे सिद्धान्त रुप से मानता हूँ। गंगाजी व्यो-ज्यों आगे बढ़ती जाती हे, त्यों-त्यो उनमें
अमेक नदियाँ मिलती जाती हैं. और अन्त से उनके मुख के
पाप्त उनके पात्र इतना विशाल हो जाता है कि न तो दाहिनी
ओर और न बॉई ओर किनारा दीख पढ़ता है। नाव में बेठे हुए मुत्ताफिए को तो उनके और समुद्र के बिध्तार में कोई फके नहीं दिखाई देता। यही वात सत्याम्रह के युद्ध केविपय में भी
घरितार्थ होती है.बह ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता जाता हे त्यो-त्यों
उसमें अनेक वस्तु मिलती चक्नी जाती है, और इसलिए उसके
परिणाम मे भी पृद्धि होती जाती है। सत्याग्रह के इस परिणाम को, उसकी इस विशेषता को, मेंअनिवाय मानता हूँ।उसका कारण
उसका मूल-भूत तत्व ही है। क्योंकि सत्याग्रह मे तो कम से कम
ही ब्यादा से व्यादा है। अर्थात् जोकम से कम है, उसमे से और छोड़ा भी क्या जा सकता हे? शुद्ध सत्य से कम क्या होगा ! इसलिए उससे मनुष्य पीछे तो हृट ही नहीं सकता। ल्वामाविक
क्रिया वृद्धि दी है. । अन्य लद्टाइयों शुद्ध होसकतीहैं,किन्तु उनमें