पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३०७

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दक्षिगु प्रफ्रिका ता सत्याग्रह

आगे चल कर अपनी माँगें घटाने फे लिए श्रवकाश पहले ही से रा्पा जाता है। इसलिए मैंने इस परिपय में यह शंक्रा जाहिर की कि वृद्धि कामिथत उनमे निरपवाद रूप से नहीं कम समता। अब यह सममाना बाकी रहा ऊि वृद्धि कानियम निरपंवाद रुप

से ही कैपे लगता है, जहाँ माँग कम से फम है। जिस तरह गंगा

नदी वृद्धि को हूँढने केलिए अपना मार्ग नहीं छोडती। ठीक मी तरह सत्याप्रही भी अपने मार्ग को, जो तलवार की धार के समान

है, नहीं छोड़ता । गंगा का प्रवाह प्यो-ज्यों श्रागे बढ़ता जाता दे; तॉ-त्यों अन्य सरितायें उसे अपने श्राप मिलती जाती दे; ठीक

बही वात सत्याप्रह की गगा के विषय मे भी चरिताथे होती है। बस्ती का कानून सत्याग्रह मे शामिल्ञ कर लेने पर, और उसे देख कर सन्याप्रह के सिद्धान्तों फोन जानने वाले जितने ही

भारदोयों ने यद भाम्रद किया कि ट्ान्सवाल के भारतीयों के-

खिलाफ जितने भी कानून हैं, उन सत्रफ़ो सत्पाम्रद में शामिल कर लिया जाय। दूमरे कितने हो लोगों ने यह भी कहा कि जेब तक सत्याप्रद शुरू है, तब तक नेटाल, फेप कॉलोनो, ऑरेडज की

स्टेट आदि सव को निमन्त्रित कर, समस्त दक्षिण अफ्रिका के

भारतीयों के खिलांफ जितने भी कानून हैं, उनमे से प्रत्येक के विरुद्ध सत्याप्रह छेड दिया जञाय। परन्तु इन दोनों बातों से सिद्धात का भंग द्वोता । मैंने उनसे स्पष्ट कह दिया कि जिस वात को

हमले सत्याग्रद्‌ शुरू करने से पहले पेश नहीं क्या था, उसे अब

सौका देख कर खड़ी करना अप्रामाणिकता है। हमारी शक्ति चाहे

जितनी क्यों न बढ़ जाय, तथापि जिस चात के लिए हमने सत्या*-

अद्द छेड़ा था, वह सिद्ध होते ही हमें अपने सत्याप्रह को भोट समाप्त कर देना चाहिए। अगर हम हस सिद्धान्त पर दृदू न रहते तो मेरा पूरा विश्वास हैकि जीतने के घदले हमेंदवरना हीपढ़ता |