पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३०८

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पर एक नया आरोप

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इतना ही नहीं; वल्कि हमने जो विश्वास सम्पादन कर लिया था, उससे भी हमे हाथ धोना पड़ता | इसके विपरीत प्रतिपक्षी सत्याप्रह के चीच ही मे यदि नई आपत्तियाँ खड़ी कर दे, तो अचशय ही उतका समावेश सत्याग्रह में होजाता है। अपने निश्चित मांगे पर चलते हुए सत्याप्रही यदि राह से अनायास

श्राने वाली चस्तुओं की अवगणना करे तो उसे सत्याप्रह को ही

छोड़ना पड़े ।और प्रतिपक्ती तो पत्यांग्रही होता ही नहीं।

(क्योंकि सत्याग्रह के विपक्ष मे सत्याग्रह एक असम्भवनीय वस्तु है।) इसलिए उसे न्यूनाधिकता का बन्धन ही नहीं होता । यदि

बह सत्याम्रही को उराना चाहे तो फोई नवीन वस्तु खड़ी करके ऐसा कर सकता है । पर सत्याग्रही भय को तो पहले दी से त्याग देता है । इसलिए प्रतिपत्ती केनवीन आपत्तियाँ खड़ी करने परभीसत्याप्रही अपना मंत्रोधार उसी तरह शुरू रखता है। और यह श्रद्धा रखता है कि इन तमास आपत्तियों के सामने यह मंत्रोच्चार 'अवश्य ही फल्दायी होगा। इसीलिए सत्याग्रह की लड़ाई ब्यों-ज्यों बढ़ती जाती है, अर्थात्‌ प्रतिपक्षी ज्यों-व्यो उसे

लम्बाता है, त्यॉ-त्यों सत्याम्रद्दी की दृष्टि सेतो प्रतिपत्ती अपनी हानि और सत्याप्रही काफायदा ही करता है।इस त़डाई के

इतिहास में हम इस नियम के कई उदाइरण आगे चल्चकर देखेंगे।