पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३०९

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सोरावजी शापुरजी अ्रहजनिया नवीन बस्ती बाला कानून भी सत्याप्रद मेशामिल कर लिया गया। पर नवीन भारतीयों फो दाखिल करना प्रासान नहीं था। यह करना भी सत्याप्रढ़ियों का ही काम था । कमिटी ने यह तो

निश्वय कर लिया था कि ऐसे वेसे भारतोय से यह काम नहीं लेना

वाहिए। नवीन बस्सी के कानून से दो प्रतित्रंथक शर्ते थीं, जिनके

विषय में दम कोई आपत्तिनहीं थी। अत' हमने किमी ऐसे ही मतुष्य को ट्रन्सवाल में दाखिल करके जेल रूपी महल में भेज देना चाहा, जो उन दोनों शर्तों कापालन कर सऊता हो । इसके द्वारा इसे यद्द साबित करना था कि सत्याग्रह तो मर्यादा-धर्म है।

इस कानून मेंएक यद्द भी घारा थी कि ट्न्सचाल में आनिवाले

नवीन आदमी को यूरोप की किसी भी एक भाषा का छान दोनों जरूरी है.। इसलिए कमिटी ने किसी ऐसे द्वी आदमी को दन्सवाल्न मेंलाने का सोचा, जो अंग्रेज़ी जानता हो पर पहले फभी

दून्सवात्न मे न रद्दा हो। कितने ही भारतीय उमीदयार खड़े हुए । परकमिटी ने उनमे से सोराबजी शापुरणी अडाजनिया की प्राथना को ही वतौर कसौटी (टेस्ट केस) के मान्य किया।

सोराबजी पारसी थे। नामसेही स्पष्ट है। सारे दक्षिण अफ्रिका में पारसियों की जन-संख्या सौ से ज्यादह नहीं होगी।