पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३१२

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सोरावज़ी शापुरजी अडाजनिया

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फल्लेए्ड मेजब एम्व्युलन्स कोर की स्थापना हुईं, तब उसका

झारंभ करने वालों में वह भी थे,भर भ्राखिर तक उससे रहे |इस

इल को भी सत्याग्रह करना पड़ा था । उसमे से छई फिसल गये थे प्र फिर भी जो अटल रहे, उत्तम सोराबजी अग्रगण्य थे | यहाँ पर सुझे यह भी कद्द देना चाहिए कि इस दल को सत्याप्रह मेंभी बिजय ही सित्ली थी।

इंग्लेण्ड भे बेरिस्टर होकर सोराबजी जोह्ान्सवर्ग गये। वहाँ पर उन्होंने सेवा और वकालत दोनों ल्लाथ ही साथ शुरू फर दीं। दक्षिण अफ़रिका से मुझे जो पत्र मिल्रे उनमे सोरावजी की

तारीफ ध्रमी करते ये ।वह श्रब भी चैसे हो सादा मिजाज हैं,जैसे पहले थे,भ्राउम्वर जरा भी नहीं है. |छोटे सेबढ़े तक सब से हिल्ल-मिल कर रहते हैँ | मातम होता है, परमात्मा जितना

जुयालु हैउतना ही शायद निठुर भी है। सोरावजी को दीजत्र क्षय ने प्रसा, और कौस का नवीन प्रेम सम्पादन कर उसे दुख मे रोती

हुईछोड़ कर वह चक्त बसे | इस तरह परमात्मा नेकौम के दो

पुरुष-रत्न छीन लिये--कांछलिया और सोरावजी | पसन्दगी दी करनी हो तो मेंइन दो मे से किसे प्रधम-पद्‌ दूँ? पर में तोइस तरद की पस्तन्दुगी ही नहीं कर सकता | दोनों अपने-अपने क्षेत्र मेअप्रतिम थे। काइलिया शुद्ध मुग्लमान और उतने ही शुद्ध भारतीय भी थे;उसी प्रकार सोरावजी भी

शुद्ध पारसी'ओर साथ दह्वीउतने द्वीशुद्ध भारतीय थे ।

थद्दी सोराबजी पहले पहल सरकार को नोटिस देकर केवल 'ेस्टः अर्थात्‌ कसौटी के लिए टरान्सवाल आये | सरकार इसके गएजरा भी तैयार नहीं थी। इसलिए वह एकाएक यही निश्चय नहीं कर सकी कि सोरावजी के साथ कया करना चाहिए । सोरावजी

तो जाहिरा तोर पर सरहद ल्ॉच कर दूस्सवाज मे आ धमके।