ह०
इतिय अफिदा शा सत्यापः
इसका फारण बताने हुए उस्येनि चपना अप्रेशी भाषा को शान लियाया। याद भी लिया कि यरि अधिकारी उसकी अंप्रेती थी
परीक्षा लेगा चादे, सो उमके लिए भो यह वेयार हैं.।
इस पत्र को योई ररर ने मिला। पर इसके कई दिन बाद हद
एक सम्मन मिला। मामला अ्रदलन में पेश हुशा। न्यायालय
भारतीय दर्शोों सेसयायच भर गया था। मामला शुरू ते
से पहले, न्यायालय में श्राये हुए भाखीयों को वही अत में
एकन्र पर उनेडी एक सभा की गई। जिसमे सोसवजी ने एक जोशीला भाषण दिया। सापण के अन्त में उन्दनि यह कि--/पूरी जीत होने तर जितनी ब्रार जैक्ष में जाना प्रतिष्ा फी
होगा, मेंजाने को तैयार है. और जितने भी संकट 'आवधेंगे उन सबओने झेलने फो तयार ह#ै?। अ्त्र तक इतना समय गुजर चुत्रा था कि मेंसोरागजी को भ्रच्द्ी तरह जानने लग गया था। मैने अपने मन मे यह भी समझ लिया था कि अवश्य ही सोरावजी एक शुद्ध रत्न मिद्ध होंगे । मुफदसा शुरू हुआ |मेंवरील की हँसियत सेखडा हुआ | सम्मन में कितने द्वी दोप ये। उन्हें दिसाकर मैंने सोराबज्ी पर से सम्प्नन उठा लेने केलिए फोर्ट से अज किया | सरकारी वकील मे श्रपनी दलीलें पेश फी। पर अदालत ने मेरी दलोलों को स्वीकार कर सम्मन हटा लिया।
कौम मारे इर्पके पागत् दो गई। सच पुद्धा जाय तो उसके इस
तरह पागत्ञ होने के लिए कारण भी था। दूसरा सम्मन निकाल
कर फौरन द्वीसोराबज्ी पर पुन. मुकदमा चलाने की हिम्मत तो सरकार को किस तरह दो सकती थी! ओर हुआ भी यही। इसलिए सोरावजी सावजनिक कामों मे लग गये ।
पर यह छुटकारा हमेशा के लिए नहीं था। स्थानीय भारतीयों को तो सरकार पकड़तो ही नहीं थी। सरकार ने देखा कि