सोराबजी शापुरज्ी अडाजनिया
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धहू ज्योंब्यों गिरफ्तारियाँ करती जाती है त्पो-्त्यों कोम का जोश बहता दो जाता है फिर किसी न किसी सामले मेंकानून की बारीकी
के कारण यदि कोई भारतीय छूट जाता है, तो इससे भी फोम का जोश बढ़ता है । सरकार को जो कुछ भी कानून बनाने थे बह
म#जूर कर चुकों थी। यह सत्य है.कि बहुत से भारतीयों ने परपाने जज्ा डले थे; किन्तु परवाने लेकर वह वहाँ रहने का अपना
हक भी तो सिद्ध कर चुके थे |इसलिए फेवल उन्हें जेल भेजने ही के लिए उन पंर मुकदमा चलाना सरकार को फायदेमन्द नहीं
मालूम हुआ | उसने यह भी सोचा कि यदि हम खामोश रहेंगे तो आन्दोलन करने के लिए इन ज्लोगों केपास कोई कारण नहीं
रह जायगा, और आन्दोलन अपने आप शान्त हो जायगा। पर सरकार का यह खयाल गलत था। कौस ने सरकार की खामोशी का अन्त देखने के लिए एक ऐसा नवीन काम कर डाला जिससे उसे अपनी खामोशी अलग रख कर धोरावजी पर फिर मुकदमा चलाना पढ़ा ।