पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३१७

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सेठ दाऊद महमद आदि का युद्ध मेंशामिल शेना

जब कौम ने देखा कि सरकार अपनी चुणी और खामोशी से कौम को थक्रा देना चाहती हैं,तब खुद उसीको अपना कदम आगे जबतक दुख सहने की शक्ति द्वोगी बढ़ाना पढ़ा । सत्याप्रही में तब॒तक तो वह कभी न थक्केया ।सरकार की घारणा को शी सावित करने के ज्िए कौम सम थी ।

नेटाल मैंकई ऐसे मारतीय रहते थे,जिन्हें टृन्सवाल मे रहने के पुराने हक दवासिज्ञ थे। व्यापार के लिए उन्हेंदून्सवाल आते फी आवश्यकता नहीं थी। कौम यह मानती थी कि उन्हें, दून्सवार्श

आगे का जझूर हक है। फिर उमल्षोगों को वो थोड़ा बहुत

अंग्रेजी का भी शञान था। इसके श्रतिरिक्त सोराबनी के जे सुशिक्तित्र भारतीयों को शामित् करने में सत्याप्रह के किसी नियम का भंग भी तो नहीं हो रहा था । इसलिए दो अकार के भारतीयों को शामित् करना तय किया गया। एक तो वे, जो कि पहले

टून्सवाल में रद्द चुके ये, औरदूसरे वे, लिन्‍्दोंने अंग्रेजी शित्ता

प्राप्त कीथी, अथवा जिन्हे शिक्षित' कष्दा जासकता था। इनमे सेठ दाऊद महमद, और पारसी रुस्तम जी दो

व्यापारियों मे से थे।और सुरेल्द्रनाथ मेढ, शरागणी सँडभाई