पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३२६

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देश-निकाला

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जा सकता था| इस समय तो केवल यही धर्म था कि हम एक दूसरे के प्रति हमदर्दी दिखावे |

अतुभव से 'मेंने यह देख लिया है कि हमदर्दी, सीठे शब्द और मोठी नज्ञर वह काम कर देती है; जो रुतये-पेसे से नहीं होता ।धन के लालची को भो अगर मीठी वाणी न मिल्ले तो

बह भी आखिर छोड़ कर चल देगा। इसके विपरीत प्रम की मुल्ञायम रस्सी से बेचे हुए मनुष्य अनेकानेक सफट सहने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। इसलिए इन देशनिराले की सजा पाये हुए भाइयों के विपय मेंयही तय हुआ कि उनके लिए वह सब किया जाय जो

सद्दातुभूति और हमददी कर सऊती है |उनको आश्वासन दिया

गया कि उनकी सह्दायता के लिए भारत मे यथा-शक्ति व्यवस्था

'की ज्ञायगी |पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिए कि इनसे से अधिकांश तो गिरमिट मुक्त द्वी थे। भारत में कोई रिश्तेदार

बगैरा उन्हें नहीं मिल सकते थे। कितनों का तो जन्म ही

अफ्रिका का था । सबको भारतत्रप विदेश के समान मालूम होता था। इस तरदद के निराधार मनुष्यों को भारत के किनारे पर उतार कर उन्हें यहाँ-बरहाँ भटकने के ज्षिए छोड़ देना तो जघन्य दुष्टता होती | इसलिए उनको यह विश्वास दिलाया गया कि भारत मे

उनके लिए पूरी व्यवस्था कर दी जायगी । यह सब कर देने पर भी उन्हें तब तक शाति केसे मित्त सकती थी, जव तक कि कोई खास मददगार उनके साथ न कर

पदिया जाय ९ देश निकाले की सजा पाने पाल्नों का यह पदत्ना ही दल्ल था। स्टीमर छूटने को कुछ द्वीघंटों कीदेरी थी। पसंदगी करने के लिए समय नहीं था । साथियों भें से भाई पी० के०

नायडू पर मेरी नजर गई। मैंने पृछा--