श्र
दक्षिण अफ्रिका का सत्यामह
“छत गरीब भाईयों को भारत छोड़ने के लिए आप जा सकते है ९” “बड़ी प्रसज्ता के साथ ।”
“पर स्टीमर तो अभी खुलने ही की है |”
/तो मुझे कोन देरी है १”?
भपर आपके कपड़े वगैंरा ओर खर्चा १”
“कपड़े तो शरीर पर हैं ही, रही खर्चे कीबाव।सो तो
स्टोमर दी भे मिल जायगा ।”
मेरे हुए और आर्य की सीमा न रही। पारसी रुत्तमजी के सकान पर यह बात चीत हुईंथी। वहीं सेउन्तके लिए कुछ
कपड़े, कम्पत्न वगैरा साँग-मूंग॒कर उन्हें रवाना कर दिया। ५देखिए भाई, राह मे इन- भाइयों कोअच्छी तरह संभाल
कर ले जाइए इनको सुक्ञा कर फिर आप सोइए और खिला-
कर खाइए। मद्रास के मि० नटेसन के नाम में तार भेज देता
हूँ। बह जैसा कह वही कीजिए।”
“एक सच्चा सिपाही वनते की सें कोशिश करूँगा ।” यह कह कर वह निकल पढ़े। मुझे निश्चय हो गया कि जहाँ ऐसे-ऐसे
वीर पुरुष हें,वहाँ कभी द्वार हो ही नहीं सकती। भाई नायडू का जन्म दक्षिण अफिका मेंही हुआ था । उन्होंने कभी भारतवर्ष
का दर्शन तक नहीं किया था । मि० नटेसन के नाम मेने एक परिचय-पन्न भी उन्हें देदिया थाऔर उसी समय एक तार भी उनके नाप्त भेज दिया।
यह कह तो अत्युक्ति नहोगी कि इस समय अवासी भारतवासियों के ठुःखों पर विचार करने वाले, उनकी सद्दायता करने
बाते, उनके विषय से उचित रीति सेऔर ज्ञालपूर्वक लिखने वाले
सारे भारतवर्ष में अकेले नटेसन ही ये। मेरे और उसके बीच