पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३२८

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श-निकाला

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धरावर नियमित रूप से पन्न व्यवहार चल रहा था। जब ये देश-

निकाक्े की सजा पाये हुए भाई मदरास पहुँचे, तथ मि० नटेसन ने उनकी हर तरह से सेवा-सहायता की। भाई नायडू-जेंसे समकदार आदमी उनके साथ में थे। इसलिए मि० नटेसन को भी काफी सह्यौयता मित्री | स्थानीय चंदा एकत्र कर सिं० नठेसन ने उनकी

इस कदर सेवा की क्रि उन्हें यह याद तक नहीं द्वोने पाया कि वे घर-बार छोड़ कर देश निकाले की सजा से आये थे । दक्तिण अफ्रिका की स्थानीय सरकार का यह कास जितना

ही निर्देयता-पूर्ण था उतना ही गैर-कानूनी भी था। बह भी इस वाद को जानती थी। सामान्यतया लोगों कोइस बात का खयाल नहीं रहता कि सरकार कई वार हेतु-पूेक अपने कानूनों का भंग आप ही करती रहती है. |कठिनाई के समय नवीन कानून बनाने के लिए समय नहीं रहता | इसलिए कानून को तोढ़ कर भी वह

अपना काम वना लिया करती है। वाद मे फिर था तो मवीन कानून वना लिया जाता है, या कोई ऐसा कार्य सरकार कर डालती है, जिससे प्रजा इस बात को भूल जाय कि उसने कभी अपने कानून का भंग भी किया था या नहीं । सरकार के इस कानून पर भारतीयों मेखूब हलचल मचा दी | भारत में भी शोर सच गया । स्थानीय सरकार के लिए अब

इस तरह गरीब भारतीयों को देश-निकाले कीसजा देना देद़ी खीर हो गई। भारतीयों ले उचित कानूनी उपायों का अचक्षम्धन भी किया। अ्रपीलें भेजी, उसमे भीसफ्ञता प्राप्त हुईं, और अंत मेंदेश निकाले की सजा वालों को भारत मे भेजने की प्रथा तो कतई बन्द हो गई।

पर इसके असर से सत्याप्रही फौज नहीं बच सकी। अब

तो खास-खास थोडा दी रह गये | ४ कहीं भारत मे न भेज दिये