पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३२९

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दक्षिण अफ्रिका का सत्याग्रह

जाँय ? । इस भग्र का त्याग सब्र नहीं कर सके |

कोस का उत्साह तोड़ने केलिए सरकार ने ऊपर पताथा गया केवल्ल एक ही उपाय नहीं किया था । पिछले प्रकरण भे मे

लिख चुका हूँकि सत्याप्रददी कैदियों को दुःख देने में सरकार नें कोई बात उठा न रकह्ली ।पत्थर फोडने तऊ का काम उतसे लिंग गया था । पर वह तो इससे भी आगे बढ़ गई । पहले पहल सभी

कैदियों की एक जगह रखा जाता था। अन्न उन्हेंअज्ञण अक्म रखने की नीति को उसने अख्तियार कियों, और अत्येक जे

में कैदियों को खूब सताता शुरू किया | दून्सवाल् का जाड़ी वड़ी सख्त होता है। ज्ाड़ा इतना भयंकर पढ़ता था कि सुत्रह काम

करते-करते द्वाथ पैरठिदुर जाते ये। ऐसी स्थिति में कितने हो

कैदियों को एक छोटीसी जेल मे रक्धा गया, जहाँ उन्हें कोई मिल्षने भी न पाये। इस दल्व मेनागापत नामझ एक सौजबाते सत्याग्रही था। उसने जेल के नियमों का पालन किया। उसे

जितना काम दिया गया, सभी कर डाला । सुबद, पौ फटते ही, सहकों पर मिट्टी डालने को वह जाता | नतीजा यह हुआ कि उसे

फेफड़े का सख्त रोग हो गया और अंब में उसने अपने प्यारे श्राण अपित कर दिये | नागापन के साथी कहते हैं. कि अत्व समय तक उसे लड़ाई की ही घुद थी। जेल जाने से इसे कभी पश्मातताप

नहीं हुआ। देश-कार्य करते करते आई मृत्यु काउसने एक मिंम की तरह त्यागत किया | हमारे नाप से नापा जाय तो नांगापन

को निरज्ञर द्वीकहना पडेंगा। अंगरेजी, जुलु आदि भाषायें वह

अपने अभ्यास के कारण वोल सकता था, छुछ-कुछ अंग्रेजी लिप भी सकता था। पर चिद्वानों की पंक्ति में तो उसे कदापि नहीं रखा जा सकता था। फिर भी नागापन का घीरज उसकी शाति

देश-भक्ति, श्रौर सीत की घही तक दिखाई हुईं उसकी दृढ़दा पर