पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह २८ आँख के बदले आँख' की नीति को सोलहों थाना मानते हैं। और जैमा मानते हैं, वैसा ही करते भी हैं। हर तरह के कष्ट झेलकर भी मनुष्य को अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा करनी चाहिए इसे समझ कर बोअर स्त्रियों ने भी इसे धार्मिक फरमान समम, धीरज और धानन्द माथ तमाम आपत्तियाँ सह ली । भरतों को मुकाने के लिए स्वर्गीय लार्ड किचनर ने किसी उपाय में कसर नहीं रखी। अलग-अलग हिम्सों में उन्हें बन्द कर रखा। वहाँ उनपर असल पत्तियाँ आयीं। खाने-पीने की साँसत, सरदी- गरमी के मारे चेहाल | कोई शराब के नशे में चूर अथवा कामाध सोल्जर इन बिना लावारिश स्त्रियों पर हमला भी कर बैठता। इन हातों में अनेक प्रकार के उपन पैदा होते थे। ऐसा होते हुए भी ये बहादुर न की। और अन्त को खुद किंग एडवर्ड ने ही कार्ड किचनर को लिखा "यह में सहन नहीं कर सकता। यदि योछार लोगों को मुकाने का यही इलाज हमारे पास हो, तो इसकी अपेक्षा मैं हर तरह की सुलह को पसट कर लूँगा । लड़ाई को आप शीघ्र स्खतम कर दीजिये ।" इन तमाम कष्टों की आवाज इंगलैण्ड में पहुँची, तब अंग्रेज जनता को भी दुःख हुआ। वोअर की बहादुरी 'से वे लोग आश्चर्यचकित हो गये। यह बात अंग्रेज लोगों को चुभा करती थी कि इतनी-सी छोटो जाति ने दुनिया में चारों ओर फैली सल्तनय के छक्के छुड़ा दिये। पर जब इन दातों के अन्दर बन्द स्त्रियों का आर्तनाद उन औरतों के द्वारा नहीं, उनके मद के द्वारा नहीं, क्योंकि वे तो समाम में ही जूझ रहे थे कि दक्षिणी के इक्के-दुक्के उदारचरित अंग्रेज स्त्री-पुरुष के द्वारा वहाँ पहुँचे, तन व जनता सोच में पड़ी। स्वर्गीय सर