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२६ इतिहास हेनरी केम्पवेल चैनरमैन ने अंग्रेजी जनता के हृदय को पहचाना और लड़ाई के खिलाफ गर्जना की। स्वर्गीय श्री स्टेड ने प्रकट रूप -से ईश्वर से प्रार्थना की और दूसरो को भी प्रेरणा की कि इस लड़ाई में ईश्वर अंग्रेजों को इरावे। यह दृश्य अद्भुत था । -सचा कष्ट यदि सचाई के साथ सहन किया जाय, तो वह पत्थर- जैसे हृदय को भी पानी-पानी कर डालता है। कष्ट सहन की अर्थात् तपस्या की महिमा ऐसी ही है। और यही सत्याग्रह की कुञ्जी हैं। नतीजा यह हुआ कि फोनिखन की सुलह हुई और अन्तको दक्षिण अफ्रीका की चारों रियासतें एक तन्त्र के अधीन हुई । यद्यपि इस सुलह की बात को हर एक अखबार पढ़ने वाला हिन्दुस्तानी जानता है, तथापि एक दो बातें ऐसी हैं, जिनका खयाल तक होने की सम्भावना बहुतों को नहीं। फोनिखन की सुलह के साथ ही चारों रियासतें संयुक्त नहीं हो गयी थीं। हर एक के लिए अपनी-अपनी धारा-सभा थी। उनका कार्यकारी - मण्डल पूरे तौर पर इन धारासभाओं के नजदीक जवाबदेह न था । ऐसे संकुचित हक से जनरल बोथा अथवा जनरल स्मट्स को सन्तोष नहीं हो सकता था । लार्ड मिलनर ने बिना दूल्हे की बराव ले जाना निश्चित किया। जनरल बोधा धारा-सभा से अलग रहे। उन्होंने असहयोग किया। सरकार से संबंध रखने में साफ इन्कार कर दिया। लार्ड मिलनर ने एक उम्र भाषण किया और कहा कि जनरल बोथा को यह मान लेने की जरूरत नहीं है कि इतना सारा भार उनके सिर पर है। राज्य कार्य उनके बिना भी चलाया जा सकेगा । अरों की बहादुरी, उनकी स्वतन्त्रता, उनकी कुरबानी का वन मैंने बिना किसी संकोच के किया है; पर इसमें मैं पाठकों