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दक्षिण अफ्रिका का सत्याम्ह

में भी मेरा साथ दिया । मेरी आपत्ति दूर हुई। एक ओर से दृक्षिर

अ्फ्रिका के क्रिनारे परउत्तर कर फोम को अपने काम के निष्फलता की खबर देना मेरे किस्मतमेबढा था, वहाँ दूसरी भोग

उसी समय परमात्मा ने मुझे आर्थिक चिंता से मुक्त करना ठार लिया था। क्यों कि जद्दाज से उतरते द्वी इंग्लेश्ड का तार मिल कि सर रतन ताता ने २४०००) का दान भेजा है। इतनी बई रकम उस समय मेरे लिए काफी थी। मेरा काम चल निकला। पर इतनी घड़ी रकम से अथवा इससे भी अधिक-मनमनेद्वव् सेभी सत्याग्रह के-सत्य के-श्रात्मशुद्धि के श्रथवा आत्मवल फे यु

का संचालन नहीं किया जा सकता था ।इस युद्ध के लिए तो चारित्र रुपी मूलधन की आवश्यकता होती है। मालिक से शूत्य महल जिस

तरह खंडहदर के समान माद्धम होता है,ठीक वही द्वाल चरित्र्दीव भनुष्य और उसकी सम्पत्ति का समम्झे। सत्याप्रद्दियों ने देखा वि अवब इसका कोई ठिकाना नहीं, कि युद्ध कितने दिन तक चलता

रदेगा। कहाँ तो जनरल वोथा और जनरल स्मट्स की एक इंच

भर भी न हटने की अतिज्ञा, और कहा सत्याप्रहियों की यह प्रतिज्ञा कि इस सरते दम्र तक जूमेंगे |हाथी और चिउंटी के बीच युद्ध हो रद्द था। द्वाथी के एक पैर के नीचे संस्यातीव चिउंदियां दब

सकती है । सत्याम्रह अपने सत्याम्रह की अवधि का समय सीमित

नहीं कर रूकते थे ।एक बे लगे या अनेक, उनके लिए तो एक

ही वात थी। उनके लिए तो लड़ते रहना ही विजय थी, और

लड़ने के मानी थे जेल जाना, तथा देश से निर्वासित हो जाना । पर इस बीच परिवार की क्‍या हालत हो ९ निरन्तर जेल जाने

वाल्ले को कोई नौकरी तो किसी प्रकार दे ही नहीं सकता था । जेल से छूटने पर क्या तो चह स्वयं खाबे और क्या वच्चों को ख़िलावे १ रहे भी कहाँ पर ? किराया कौन दे ? झाजीविका न