टॉल्टॉय फार्म (२)
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सस बात का अहकार नहीं थ। |वह अतिशय कठिन परिश्रम नहीं
कर सकते थे। टून से अपना असवाब उतार कर उसे बाहर गाडी पर रख देना भी इसके लिए कठिन था। परन्तु यहाँ तो वह भी मिहनत पर चढ गये | उन्होंने वह सब यथाशक्ति कर लिया।
टॉल्स्टॉय फार्म पर कमजोर आदमी सशक्त हो गये और सभी परिश्म के आदी हो गये | सभी को किसी न किसी व|यवश जोहान्सवर्ग जाना पढ़ता, बच्चों को भी वहाँ की रूर बरने वी इच्छा होती | मुझे भी कासकाज के किए वहाँ जाना पड़ता। इसलिए यह तय हुआ कि
सावजनिक काम के लिए जाने वाले ही को रेल से जाने की
इजाजत दी जाय । तीसरे दज को छोड कर ऊपर के दर्ज मे तो किसी को भी नहीं जाना चाहिए।जिसे केवल सेर फ्रने के
- ज्षिए जाना द्वोवह पेदुल्न जावे। दवां, रास्ते में नाश्ते के लिए कुछ
साथ में जरूर ले जाय | शहर मे अपने खाने पर कोई खच्च न
करे | यदि इतने कड़क नियम नहीं बनाये जाते, तो जिन पैसों
को बचत करने के लिए बनवास,के कष्ट उठाये थे,हे रेल-किराया आर शहर के नाश्ते दी में उड़ जाते। घर से हम लोग जो नाश्ता ले जाते वह भी सादा ही होता
था | घर पर पिसे हुए मोटे और बिना छने हुए आदे थी रोटी, मूंगफल्ली सेघर पर द्वीबनाया हुआ मक्खन, »र संत्तरे के छिक्तफों
का मुरच्बा |आटा पीसने के लिए हाथ से चज्ञाने की लोहे की चक्की खरीद ल्ञी गई थी। मूंगफ्ली कोभूजक्र पीस ढालते से
' मक्खन बन जाता है | दूध से वनाये मक्खन की बनिस्वत इसकी
कीमत एक चौथाई होती थो | संतरे तो फासे मे ही पेदा होते थे ।
पास पर गाय का दूध हस शायद ही कभी खरीदते। अक्सर डिब्बे के दूध से दी काम चलना लेजाते। न्ैँ