पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३५६

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टॉल्स्टॉय फामे (३)

ग्रशा के लिए इतना स्थान ज़रूर है. कि उनके द्वार पर जागो

उस॑ख्य भिखारी खड़े हैंतहां उनके कान भी तो, अरूख्य हू । सल्लिए मुझे उनपर पूरी श्रद्धा है। जब से योग्य हो जाडेंगा तत्र ह, मेरी प्राथना को जरूर सुनेगे । यह था मेण बह प्रयोग

बदमाश समझे जाने वाले लड़कों कोओर निर्दोष सयानी

एज्षिकाओं को में साथ-साथ स्नान के लिए भेजता। बालकों को पर्यादा-धर्म खब समझ दिया गया था। मेरे सत्याप्रह से वे सब (रिचित थे । माता की तरह भेरा उन पर प्यार था। इस बात को है तो ज्ञानता ही था पर व उसे भी मानते थे। पाठक उस पानो के फरने को न भले |पाकशाला से वह्द दूर था। वहा पर इस तरह

ह सबम्मि्ञन होने दिया जाय और साथ द्वीनिर्दोषिता कीभी आशा

फ्खी जाय? मेरी आंखे तो उन बालिकाओं के साथ-साथ उसी

रह घूमती रहती थीं, जिस तरद्द एक माता की आंखे अपनी

लड़की के आसपास घूमती रहती हूँ । प्रत्येक काम का समय बंधा हुआ था। (नान के लिए सब लडके-लड़कियां साथ जाते । संघ सें एक प्रकार की सुरक्षितता होती है, पद यहां भी थी। एकात तो कहीं भी न मिलता । मिलता भी तो कम से कम भें तो जरूर ही वहां 'रद्दता ।

खुले बरामदे मेसब सोते थे। बालक और बालिका सी परे ही आसपास सोती । विस्तरों केबीच तोन फोट का अन्तर रहता था। सोने के कम में भीसावधानी जरूर रक्खी गई थी। धर दोषित सन के नजदीक पद्द सावधानी क्या चोज् थो | अब

"तो में देखता हूँ किइन बालक-बालिकाओं के मामले में परमात्मा ने ही लाज रक्खी । मेरी यह धारणा थी कि बालक-

यात्षिकायें (स तरद्द निर्दोष भाव से दिलसिल कर रह सकते हैं|