पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३५८

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टॉल्स्टॉय फार्म (३)

रे

निकला । फिर से कहीं बदसाशी की बात तक मेरे कानों पर नहीं आई । इन वाल्ञाओं का तो कुछ भी नहीं विगड़ा। इससे उन्हें फायदा किस हृद तक हुआ यह तो परमात्मा ही जाने'। मेंतो आशा करता हूँ किवेयुवक आज भी उस प्रसंग की याद्‌ कर करके अपनी दृष्टि फो शुद्ध रखते होंगे।

. ऐसे प्रयोग अनुकरण के लिए नहीं लिखे जाते। यदि कोई

शिक्षक ऐसे प्रयोगों काअनुकरण करेगा तो जरूर ही वह बहुत

भारी जोखिम अपने सिर पर क्लेगा। इस प्रयोग का उल्पेख तो

केवल यद्द बताने के लिए क्या गया है कि मनुष्य एक खास सांगे पर कितनी दूर तक जा सकता है । साथ ही सत्याम्रह के

युद्ध कीशुद्धत भी इससे सूचित हो सकती है।इस चरम

विशुद्धि ही मेउसकी अंतिम विजय का रहस्य छिपा हश्राथा।

ऐसं प्रयोगों के ज्िए तो शिक्षक को माता और पिता दोनों खुद ही बन जाना चाहिए। तक को एक तरफ रख कर ही ऐसे प्रयोग

किये जां सकते हैंपर इसके लिए बड़ी ही कठिन तपरश्चर्या की

जरूरत है! इस कार्य काअसर तमाम फार्सवासियों के रहन-सददन पर पढ़ा । कमसे कम ख में गुजर करना हमारा हेतु था; इसलिए

पोशाक से फर्क करना पढ़ा। शहरों मेंपुरुषों की पोशाक साधारण-

तया यूरोपियन ढंग की ही थी। सत्याप्रहियों तक का यही हाल था । फार्म पर इतने कपड़ों की श्रावश्यकता नहीं थी हम तो सब

, मजदूर बन गये थे |इसलिए पोशाक भी मजदूरी की सी, पर

६यूरोपियन ढंग की रक्खी गई। सजदूर की सी पतछून और

उन्‍्द्दींकी सीएक फभ्ीज़ | इसमें जेल का अनुकरण फिया गया

था। मोटे श्रास्‍्मानी रंग के कपढ़े फी सस्ती पतदनेऔर कमीज घाजार मे बिकती थीं। हम सब उन्हींको पहनते थे। लिनियों में