पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३६४

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डॉल्स्टॉय फाम (३)

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'मोग ज्षेने में उन्होंने किसी प्रकार फी बाकी नहीं रहने दो थी। धन सेजितनी भीचीजें खरीदी जासकती हैं उन सबको

प्राप्तकरनेकेलिएउन्होंने कभीकुछउठानहीं रखा था। ऐसे पुरुष का फार्म पर रहना, वहीं खाना-पीना, फार्म वासियों के जीवन के साथ अपने को पूर्णतया मिला देना, कोई ऐसी सी बात नहीं थी । भारतीयों को इस बात पर बडा भाश्चय और आनन्द भी हुआ | कितने ही गोरों ने तो उन्हें मूल यापागल ही समम लिया, फितनों के दिलों मेउनकी त्याग-शक्ति के कारण

उनके प्रति आदर बढ़ गया। फैलनवेक ने अपने त्याग परन तो कभी पश्चाताप किया और न उन्हें वह दुख रूप माह्म हुआ

अपने वैभव से उन्हें जितना आनन्द प्राप्त हुआ था, उतना

ही, बल्कि उससे भी अधिक आनन्द वह अपने त्याग से पा रहे

पे। सांदगी से होनेधाले सुखखों कावर्णन बरते-क्रते वह तहीन हो जाते |यहाँ तक कि कई बार तो उनके श्रोता्ों कोभी इस पछुख का आत्वाद फरने इच्छा हो जाती | छोटे से ज्ेकर बढ़े तक सबके साथ वह इस तरह प्रेस पृवंक हिलमिल जाते कि उनका

छोटे सेछोटा बियोग भी सबकेलिए असद्ष दोजाता। फल्न पौधों का उन्हें बढ़ा शौक था, इसलिए बागवान का काम उन्होंने अपने अधीन रकखा था । और प्रति दिन सुबह बालकों और बढ़ों से

उनकी काट-छाँट, रक्षा चगैरा का काम लेते। मिद्दनत पूरी लेते,

पर साथ ही उनका चेहरा इतना हंसमुख् और स्वभाव ऐसा

झानन्द्सय था कि उनके साथ काम करते हुए सबको बढ़ा “भोनन्द होता था। जब-जब कभी रात के २ बजे से उठकर

'दैल्टॉय फामे से कोई टोली जोद्दान्सवर्ग को पैदल जादी तो

फेनलबेक बराबर उसके साथ पाये जाते।

उनके साथ धार्मिक सम्वाद हमेशा होतेरहते थे। मेरे नजदीक