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दत्तिण अफ्रिवा का सत्याप्रह

भ्रहिसा, सत्य इत्यादि यों कोछोडकर तो और फोनसी वात होसकती थी ? सर्पादि जानवरों को मारना भी पाप है, इस विचार

से जिस तरदद दूसरे यूरोपियन मित्रों कोआघात पहुँचा ठीक उस तरह पहले पहले मि० कैलनवेक फो भी पहुँचा। पर अंत में

ताल्िक दृष्टिसे उन्होंने इस सिद्धान्त को छुबूत्र करलिया। हम

लोगों के साथ सम्बन्ध होते ही इस बात को तो उन्होंने पहले ही मान लिया था कि जिस बात फो चुद्धिस्वीकार करे उस पर अमल करना भी योग्य और उचित है |इसी कारण वह अपने जीवन

में बढ़े से बढ़े परिवर्तन विना किसी प्रकार के संकोच के एक

क्षण मे कर सके थे।

अब तो, चूंकि सर्पादि को मारना अथोग्य पाया गया इसलिए मि० केनलवेक को उनकी मित्रता भी संपादन करने की इच्छा

होने छगी | पहले पहल् तो उन्होंने सिन्न-भिज्न जाति के साँपों की

पहचान जानने के लिए साँपों से सम्बन्ध रखने वाह्ी पिता

इकट्ठी दीं ।उनसे उच्को पत्ता चल्ला कि सभी सप॑ जहरीले नहीं होते। बल्कि कितने ही तो खेती की-फसल्ष की रक्षा भी करते रंहते हैं। दस सबको उन्होंने सपा कीपहचान बत्ताई; और अंत में एंक जबरदस्त अजगर को उन्होंने पाता, जो फार्म भे ही उन्हें मिल्षगयाथा। उसे बह रोज अपने हाथों से.खिलाते ये। एक

दिन नग्नतापूर्वक मैंने.मि० कैजनवेक से कहां, ध्यध्षपि आपका भाव॑ वो शुद्ध है, तथापि अजगर शायद इसे समक न सकता

होगा । क्योंकि आपका अर भय से मिश्रित है। इसको छोड़कर

उसके साथ इसे तरह क्ीढ़ा करने कीआपकी मेरी या फिसी की, शक्ति नहीं है! और हम तो उसी हिम्मत को'प्राई करना चाहते, हैं। इसलिए इस सप के पालन में सदूभाव तो देखता हूँपर

अहिंसा नहीं देख धकता। हमारा काये तो ऐसा हो कि जिसे