पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

टॉल्प्टॉय फार्म (३)

धर

अह झजगर भी पहचान सके | यह-ततो हमारा हमेशा का अनुभव

हैकि प्राणिमान्र केवल भय और प्रीति इन दो ही बातों को

सममते हैं ।आप इस सर्प को जहरीज्षा तो सानतेही नहीं।

केवल इसका स्वभाव आदि जानने भर. के लिए आपने इसे कैद कर खख्ा है। यह तो खब्छंद हुआ । मित्रता मे तो इसके लिए

भी स्थान नहीं है।

मि० केलनवेक मेरी दलील फो समझ गये | पर उनको यह

इच्छा नहीं हुईं कि झजगर को जल्‍दी छोड़ दे । मैंने किसी प्रकार

का दबाव तो डाला ही नहीं। सप॑ के बर्ताव में मेंभीदिलचसी:

से रहा था। बच्चों कोतोखूब आनन्द हो रहा था। सब से कह दिया गया था कि उसे कोई सत्तावे तहीं। पर बद्द कैदी खयं ही अपनी राह ढूंढ रद्म था पिंजडे का दरवाजा खुला रह धाया शायद उसीने उसे किसी तरह खोल लिया--परमात्मा जाने क्या हुआ--दो चार दिन के अंदर ही, एक दिन सुबह जब भ० केतनवेक अपने कैदी को देखने के. लिए गये, तो उन्होंने रेको खाल्ली पाया। वह और मेंभी खुश हो गया। पर इस ग्योग के कारण हमेशा के लिए सर्प हमारी बात चीत का विषय

त गया। मि० कैलनवेक एक गरीब जमेन को हमारे फार्म पर गये थे । बह गरीब भी था और पंगु भी। उसकी जांघ इतनी दी हो गई थी कि वह बिना लडकी के चल ही नहीं सकता था। र बह बड़ा हिम्म्तचर था। शिक्षित भी था; इसलिए सूक्ष्म बातों । भी बडी दिल्लचरपी बतांता | फार्म पर वद्द भी भारतीयों का ।थी बनकर सघ से दिल॒मिल कर रहता था| उसने तो निर्भयता

पक सर्पों के साथ खेलना तक शुरू कर दिया । छोटे-छोदे स्पो आता और अपनी हथेली पर उन्हें मेचह अपने द्वाथ में ले धक्षाता था ।कौन कह सकता हैकि फाम अधिक दिन तक चला