पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३६८

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टॉल्स्टॉय फाम (३) ६३ पाठक्ष यह तो आसानी से जान सकते हैं,कि फामे पर सत्या-

ग्रहियों केद्आते रहतें ये !केदहोनेकेलिए जाने वाक्षे तथा

केदसे छूटकर आते वाले सत्याप्रद्दी इन दो में से कोईनकाई वो

पह्ो जरूर ही बने रहते ।उनमें दो कद) ऐसे बहांभापहुंचे जिन्हें सजिस्टू टनेउसके अपने मुचल्कके पर हीदछोढ़ दिया था भोर जिन्हें दूसरे दिन सजा सुनमे के लिए जाना था। बात चीतहो रही थी। बात-बात मे इतना समय हो गया कि आखिरी टूव का

वक्त भीझा पहुचा | यह निम्नयनहींथाकिटूनमित्तहीनायगी । दोनो जंबान कसरती थे,वेदोनोंऔरइस मेंसे कितनेदोताकत घरलोगदौड़े। राश्तेदरमेंटे,नकेआनेकोसीटी मैंनेसुनी। हम स्टेशन के बार तक पहुँचे कि गाड़ी के छूटनेकीसीटी हुई! वेदोनों भाईतोएकसाथ दौइते चले जा रहेथे।मेंपीछेरद्द

गयाद्न खुल गई। इन दोनों को दौडते देख कर स्टेशन मास्टर

तेचलती दूनको रोक दिया, और उनदोनों को बेठा दिया। जव सेंपहुंचा तो मैंने भ्रदडसान मंदी जाहिर की ।

यह वर्णन फरते हुएमेंदोबातेंदिखा गया हूँ।एक तो सत्या-

प्रष्ियों कीअपना प्रतिज्ञा पालच करने तथा जेल जाने की उत्कट

उत्सुकता चौर दूसरे सत्याप्रहियों भर स्थानोय॑ अधिकारियों के

बीच जो मधुर-सम्पन्ध स्थापित हो गया था चह॥ अगर वेदोनों युवक टे,न नहीं पकढ़ सकते तो वे दूसरे दिन श्रद्ालत मे हाजिर "भी नहीं हो सकते |उन्तका जामिन दूसरा कोईथा दी नहीं।

और न इनसे कहीं रुपये दी लिये गये थे। उन्हेंतोकेवल उनकी

रभेलसनसाही पर ही छोड़ा गया था। बह्दां पर सत्याप्रदियों की 'साल,उतनी जम गई थी कि जेल जाने के लिए सदा उत्सुक रहने

के कारण अदात्नत के , अधिकारीगण भी उनसे कभी जासिन

क्षैना आवश्यक नहीं सममते थे। इसलिए उन युवकों फो ,टरन