टॉल्टटॉय फार्म (३).
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है। वद्द अभीतक व्यों का त्यों है, ज़रा भी संद नहीं हुआ | इन प्रयोगों काप्रभाव मेरे आस-पास रहने वालों पर तो जरूर ही
पहता। इन प्रयोगों केसाथ साथ बिना किसी प्रकार कीऔपधि
की सहायता के केवल प्राइतिक--म्सलन पानी, मिट्टी आदि उप-
घारों द्वारा रोगों के इत्ताज के प्रयोग भी में करता था। मेंवका-
लत करता था उस समय मवक्षित्रों के साथ मेरा विल्ञकुक्न घर के
जसा सम्बन्ध हो जाता ।इसलिए वे मुझे अपने सुख-ढुखों मे भी भागीदार बनाते |आरोग्य विषयक मेरे कितने हीप्रयोगों से वेपरिचित भी थे |इसलिए वे अक्सर उस विषय में मेरी सद्दायता तेते।
टॉल्टटॉय फार्म पर भी ऐसी सद्दायता के इच्छुक कभी-कभी
पत्ते आते । इनमें उत्तर हिंदुस्तान सेगिरमिट मे आया हुआ
बुटावन नामक एक वूढ़ा मवक्किल भी था। अवस्था ७० वर्ष से
- भी अधिक होगी । उसे बड़ी पुरानी दमे और खांसी की व्याधि थी।
अनेकों बेचों के काथ-पुडियों और कई डॉक्टरों की वोततों को वदद
आजमा चुका था ।उस समय मुझे अपने इन उपचारों मेअसीम विश्वास था। मैंने उसे कद्दा कि यदि तुम मेरी तमाम शर्तों का पालन करो और फार्म दी पर रहो। तो मैं अपने उपचारों का प्रयोग तुम पर कर सफ्रेगा। उसका इलाज करने की वात तो मेंकैसे कद सकता था १ उसने भेरी शर्तों कोकबूल किया। लुटाबन को
तमाखूकाबहुत भारी व्यसन था। मेरी शर्ता' में एक यह भी थी कि बह तमाखू छोड़दे ।लुटावन को एक दिन का उपवास कराया।
प्रति दिन बारह बजे धूप मे 'क्यूनी बाथ” देना शुरू किया ।उस
- समय की ऋतु भी धूप मे बैठने लायक थी ! उसे थोड़ा भाव, कुछ
ओलिय भ्ॉइल (जेतून का तेल )शहद और कभी-क्ी शहद के साथ साथ खीर, सीठी नारंगी, अंगूर और भुने हुए गेहूँकी कॉफी आदि भोजन के लिए दिया जाता था। नमक और तमाम