टॉल्टॉयफास (३) ६७, फयत भी कम हो गईं । इसके बाद एक मास में लुटावन
है
बिलकुल नंरोग हो गया। उसके चेहरे पर खूब रौनक आगई.
और वह बिदा होने के लिए तैयार हुआ।
स्टेशन मास्टर का लड़का, जो दो साल का था, टॉइफाइड
(विषम ज्वर) से पीडित था। स्टेशन मास्टर जानते थे कि मेंइस
तरह उपचार करता हूँ। उन्होंने मेरी सलाह चाही |उस बच्चे को
पहले दिन तो मैंने खाने के लिए कुछ भी न दिया। दूसरे दिन से
खूब मतत्ञा हुआ आधा केज्ञा लेकर उसमे एक चम्मच ओलिच
भाइल और तींबूकेरस की कुछ बू“द् डाल कर देना शुरू किया।
बस, और सच खुराक बंद कर दिया। हाँ, रात को इस बालक
के पेट पर मिट्टी को पद्टियाँ बाधी जाती थीं। उसे भी आराम हो
हकलक है, डा० का निदान गलत हो, और वह विषम ज्यर श्र
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इस तरद के अनेकों भयोग मेंने फाम पर किये। और जहाँ | तक मुझे याद है, उनमे से एक भी निष्फल नहीं हुआ । पर आज
उन्हीं उपचारों को आजमाने की हिम्मत मुझ में नहीं है। अब तो
विषमब्वर से पीडित रोगी को केला और ओलिबव आइल मुझ से
नहीं दिया जाय ।हाथ पॉव ही कॉपने लग जावें। १६१८ में भारतमे मुझे अतिसार की बीमारी हो गई थी। परन्तु मैं उसका
इलाज नही कर सका |मैंनहीं कह सकता कि इसका कारण क्या होगा ? पता नहीं कि ज्ञो उपचार अफ्रिका में सफल हुए, वे यहाँ
उसी परिभाण में सफल नहीं होते। इसका कारण मेरेआत्मविश्वास
'ी न्यूनता हैया वह (उपचार ही) यहाँ के जल-वायु को अनुकूल नहीं होते। पर यह जरूर कह सकता हूँकि इन घरेल्् उपचारो
बदौत्त तथा टॉल्ट्टॉय फार्म मे अख्तियार की गई सादगी के
कारण, अधिक नहीं तो कम सेकम २-३ लाख रुपये की बचत