पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३७३

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दत्तिण अ्रफ्रिका का सत्याम्रद

तो कौम को श्रवश्य हुईहोगी। इसके शलावा रहने वालों में कौटुम्बिक भावना उत्तज्र होगई। सत्याग्रह्ियों फो शुद्ध श्राश्रय

स्थान मित्र, अप्रामाणिऊुता और दस्भ क्रोफह्दी मौका नहीं मिला |

मूंग और कंकढ अलग-अलग हो गये ।

उपयुककहानियों मे बताये खुराक के प्रयोग केवल आरोग्य की दृष्टि सेफिये गये |पर इसे फाम पर रहते हुए। मैंने केवल श्रध्यात्मिक दृष्टि से खुद अपने ऊपर एक महत्वपूर्ण - प्रयोग भी किग्रा था।

इस बात पर तो मैंनेविचार किया है और उपलब्ध साहित्य

भी पढ़ा हैकि निरामिप भोजन करने वाले को हेसियत से हमें

दूघ का उपयोग करना चाहिए या नहीं, ओर यदि हाँ,'तो कितना किया जाय । इस फार्म पर रहते हुए मेरे द्वाथों में एक किताब

यथा अखबार आया, जिसमे मैंनेपढ़ा कि कलकत्ता में गाय का दूध बिल्कुल निचोड कर निकाला जाता है। इस लेख में फूके की ( पंप करने की )अमानुप और भयानक क्रिया का भी

बरणन था। एक दिन सि० केनलवेक के साथ इसी दिल दरष

पीने की आवश्यकता पर वात-चीत हो रही थी। उसमें मने इस

क्रिया की वात भी उनसे कहदी। दूध के त्याग से होने वांले अन्य कितने ही आध्यात्मिक ल्राभ भी मैंनेउन्हें बताये और यह भी कहा कि भ्रच्छा हो यदि हम लोग दूध का भी त्याग कर सके । म्रि० केनलवेक अत्यन्त साहसीथेअ्रतएव वह दूध छोड़ने का प्रयोग करने को भी एकदम तैयार हो गए । उन्हें मेरी बात बढ़ी पसन्द हुई | उसी दिन से हम दोनों ने दूध छोड़ दिया। अन्त मेंहम ' दोनों केवल सूखे ओर हरे फक्नों पर ही अपनी भ्राजीविका चल्षाने लगे। भाग का पकाया हुआझज्न भी बन्द कर दिया। इस प्रयोग के

परिणाम का इतिहास में यहाँ पर नहीं देला चाहता। पर इतना वो