श्री गोखते का प्रवास
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हो गया था। उनके साथ मेरा पत्र-व्यवहार बराबर जारी था। भारत-सचिष के साथ वह इस विषय में कुछ मशबरा फर रहे थे,
ओर उन्होंने दक्षिण अक्रिका जाकर उस प्रश्न का ठीक-दीक अध्ययन करने की इच्छा भी प्रगट की थी । भारत-सचिव से उनके इस विचार को पप्तन्द भी किया था। गोजलेजी ने छः
सप्ताह के प्रवास कीयोजना और कार्यक्रम चनाने के लिए मुझे लिख 'भेज्ञा ओर साथ ही बह अंतिम तारोख भी लिख भेजी, जब
घह दक्षिण आफिका से विदा होना चाहते थे। उनके शुभागमन
की वार्ता पढ़कर हमे तो इतना श्रानंद हुआ कि जिसकी हद नहीं। भानतक किसी नेताने दक्षिण अफ्रिका कीसफर नहीं की थी।
दक्षिण अफ्रिका की तो ठीक पर प्रवासी भारतवासियों की दशा का अ्वत्ञोकन ओर ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा सेभी किसी विदेशी
रियासत की सफर तऊ नहीं की थी | इसलिए गोखले जेसे महान् नेता के शुभागमन के महत्व को हम सब पूरी तरह समझ गये।
इमने यह निमश्नय फिया कि गोखलेजी का ऐसा खायत-सम्सान
किया जाय जैसा झब तक बादशाह का भी न हुआ | यह भी तय हुआ कि उन्हेंदक्षिण श्रक्रिका के मुख्य-मुख्य शहरों में भी ते जाना चाहिए। सत्याप्रदी और दूमरे भी उनके स्वागत की तेयारियों
मेंबढ़े उत्साहपूर्वक काम करने छगे। गोरों को भी इस स्वागत
सेंभाग केने के लिए निमंत्रित किया गयो था, औरक्ृगभग सभी
जग वे शामिल भी हुए थे। यह भी निश्चय किया गया कि जहदीँ-
जहाँ सावजमिक सभायें हों, उन-उन शहरों के मेयरों को, यदि वे / स्वीकार करें तो, अध्यक्षस्थान दिया जाय। साथ ही जदाँतक हो सके कोशिश करके अत्येक शहर मे सभा-ध्यान केलिए चहोँ के टाबन हॉल का ही उपयोग किया जाय | हमने यह निमश्वय कर लिया कि रेलपे-विभाग की इजाजत प्राप्त करके मुख्य-मुख्य