पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३८०

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भी गोखतल्ले का प्रवास

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'किंबह्द यूनियन सरकार के मिदमान हों और रेलवे के स्टेट सहन में ही सफर करे। किन्तु स्टेट सकून का तथा प्रिटोरिया मे सरकारी मिहमान होना स्वीकार करने का निश्चय उत्होंने मेरे साथ सशवरा करने के बाद किया।

जहाज से वह फेपटाउन मे उतरने वाले थे। उतका मिजाज तो मेरी अपेक्षा से भी अधिक नाजुक साबित हुआ | बह एक खाप्त तरह का भोजन दी खा सकते थे | अधिक परिश्रम

भो नहीं उठा सकते थरे। निश्चित कार्य क्रम भी उनके लिए असहय होगया । जहाँतक हो सका उसमे परिवर्तन किया गया । जहाँ कहीं परिवर्तन नहीं हो सका, वहाँ स्वास्थ्य बिगड़ने की भाशुंका होते हुए भी उन्होंने उसे कुबूल कर लिया। मुझे “

इसवात का बड़ा पश्चात्ताप हुआ कि उनसे बिना पृछे ही मैंने इतना सख्त कार्य-क्रम क्‍यों तैयार कर डाला ' कार्य क्रम में पितनी ही जगह परिवतंन किया गया, पर अधिकांश तो ज्यों

कालो ही रखना पडा | यह बात मेरे खयाल मे नहीं आई थी कि कहें एकात की अत्यन्त आवश्यकता रहती है |अत; एकान्त स्थान

के अ्रवन्ध करने में मुझे ज्यादा से ज्यादा कठिनाई हुई । पर पाथहीनम्नता पूर्वऊ मुझे यद्द वो सत्य केज्िणजहरकहना

पड़े! कि बीमार और बुजुर्गों' कीसेवा करने का मुझे खास अश्यास और शौक भी था, इसलिए अपनी मूरखता का शान होने के बाद मैंउसमें इतना सुधार कर सका था, कि उन्हें बहुत काफी एकान्त और शान्ति भी मिल सकी। प्रवास्त मे शुरू से आाखीर तक उनके मंत्री का काम स्वयं मैंने हीकिया । स्वय-सेचक

भी ऐसे थे जो सांय-सांय करती अंधेरी रात में भी चिट्ठी

का वत्तर ला सकते थे |इसलिए मेरा खयाल हैकि उन्हें सेवकों