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श्री गोखले का प्रवास

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हाजिर थे |गोखलेजी जितने दिन जोद्दान्सबर्ग में रहे,उतने दिन तक उनके उपयोग के लिए मेयर ने उन्हें अपनी मोटर देदी थी। स्टेशन पर ही उन्हें भानपत्र भी दिया गया। प्रत्येक स्थान पर

पान-पत्र तो दिये ही जाते थे ।जोहन्सबग का मानपन्न बड़ा सुदर था। दक्षिण अफ्रिका कीलकड़ी पर जड़ी हुई सोने की हृदयाकार

तख्ती पर खुदा हुआ था--तख्ती का सोना भी जोहान्सबर्ग की खान का ही था। हकडी पर भारत के कितने ही धश्यों के मदर चित्र खुदे हुए थे। गोखलेजी का परिचय, मानपत्र को पढ़ना, और उसका उत्तर दिया जामा तथा अन्य सामपत्नों का लेना यह सब काम २२ मिनिट के अदर कर लिये गये थे। मानपत्र इतना

छोटा था कि उसे पढ़ने मे पॉच मिनिट सेअधिक समय नहीं लगा

होगा । गोसलेजी का उत्तर भी पाँच ही मिनिट का था। स्वयं-

सेवकों का इन्तजञाम इतना बढ़िया था कि पूर्व निश्चित मलुष्यों के

सिवा एक भी आदमी प्लेटफार्म पर नहीं आ सका ।शोरोगुल ज़रा भी नहीं था । बाहर लोगों थी खूब भीड़ थी। तथापि किसी

के आने-जाने मे कोई कठिनाई नहीं हुई ।

उनके ठदरने की व्यवस्था मि० केलनचेक के एक छोटे से सुन्दर बंगले से की गई थी, जो जोहदान्सवर्ग से पॉच मीक्ष की दूरी पर एक टेकड़ी पर था। वहों का दृश्य ऐसा भव्य था, वहाँ की

शाति ऐसी झाद देयक थी, भौर घहुला सादा होते हुए

भी कल्षा से इतना परिपूर्ण था कि गोसलेजी खुश हो गये ।मिलने

जुल्े की व्यवस्था सबके दिए शद्दर में ही को गई थी। उसके

लिए एक खास आफिस किराये पर ले जिया गया था। उनमें एक कमरा केवल उनके आरास करने के लिए रक्खा गया था, दूप्तरा

मित्ञने-जुलमे केलिए और तीसरा कमरा मिलने आते वाज्षे सउ्जनों के बैठने के लिए। जोद्दाल्सबर्ग के कितने ही प्रसिद्ध