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दत्षिणु अप्रिफा का सत्याप्रह

गृहाथों से खानगी मुलाऊात करने केलिए भी गोसलेजी को लेगये थे। गस्यमान्य गोरें की भीएफ खानगी सभा की गई थी, मिस

गोखक्षेजी को उनके दृष्टि-बिन्दु कापूरी तरह खयाज्न हो जाय।

इपके अल्लावा जोद्टान्सवर्ग में उनके सम्मानार्थ एक विशाल भोज भी दिया गया था, जिप्तम कोई ४०० शआरादमियों को निमंत्रित किया गया था। उनमें लगभग १४० गोरे थे। भारतीय टिकिट

ज्ेकर आसकते थे |टिकट वी कीमत एक गिनी रकली 'गई थी।

टिकटों कीआय मे से उस भोज का पर्च निकल आया। भोज केबल्ल नियमिप ओर मद्यपान रहित था। साना भी केवल स्तय॑सेवकों द्वारा ही बनाया गया था। इसका वर्णन यहाँ करना कठिन

है । दक्षिण अफ्रिका के भारतीयों से हिन्दू-मुसलमान, छुत-अधूत आदि का कोई खयाल ही नहीं होता | सत्र एक साथ बैठरर खा

लेते 9ं। निराभिष श्राह्मर करनेवाले भारतीय भी अपने नियम

“का पात्ञन करते हैं.। भारतीयों मे कितने ही क्षत्रिय भी थे। दूसरी के मुआ्फिक उनसे भी मेरा तो गाढ परिचय था । उनमे से अ्रधि-

कोश गिरमिटिया साता-पिता की प्रजा ही होते हैँ ।कई होटलों में

खाना पकाने और परोसने का कामफरतेहैं.। इन्हीं लोगों की सहायता से इतने मनुष्यों फी रसोई की व्यवस्था हो सकी | तरह

तरद के कोई पंद्रह ज्यजन ये । दत्तिण अफ्रिका के गोरों केलिए

यह एक नवीन और अजीव अनुभव था। इतने भारतीयों के साथ

ए% पक्ति मे खाने के लिए बैठना, निरामिप भोजन करना

सदयपान बिना काम घक्ानों येतीनों अनुभव उनमें से कइयों के लिए नवीनथे।दोतोअवश्यहीसबकेलिएनवीन,ये।

की

इस सस्मेल्नन में गोखलेजी का बढा से बड़ा और महत्वपूरभाषण हुआ। पूरे४५ मिनट वहवोले। इस भाषण की ऐयारी के

ज्षिए उन्होंने हमारा खूब ससय लिया था। पहले उन्होंने अपना