पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३८४

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श्री गोखले का प्रवास

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जीवन भर का यह निश्चय धुनाया कि एक तो स्थानीय मनुष्यों के

टेष्टि-बिन्दु कीअवगणना नहीं होनी चाहिए, दूसरे,जहाँ तक उनसे

मित्रकर रह जाय हम मिलकर रहने की कोशिश कर ।इन दो बातों

को ध्यान में रखकर मेंउनसे जो कदलाना चाहूँवह उन्हेंबता दूँपर यह मुझे उल्हें लिखकर देना चाहिए था। साथ द्वी उनकी यह

भीशततेथी ज्रिइनमे से एक भी वाक्य या विचार का वह उपयोग न

कर तो मुझे बुरा नमानना चाहिए। क्ेख न लम्बा द्योता चाहिए और न छोटा। कोई महत्व पूर्णबात भी छूटने तलपाठे। इन सब वार्तों

के खयाल रखते हुए मुझे उनके लिए स्मरणाथथ टिप्पणियाँ लिखनी

पढती थीं। यह तो मेंसबसे पहले कह देता हूँ. कि उन्‍होंने मेरी

भाषा का तो जरा भी उपयोग नहीं किया। वह तो अंग्रेजी के पारंगत बिद्वान्‌ थे । फिर मैंयह आशा भी क्यों करूँ कि वह मेरी

!भाषा का उपयोग करे । पर मैंयह भी नहीं कह सकता कि उन्होंने

मेरे विचारों काभी , उपयोग किया । हा, मेरे विचारों की उप- ' युक्तता को उन्होंने ज़रूर स्वीकार किया । इसलिए मैंनेअपने दिल्ल

को सममा लिया कि आखिर उन्होंने मेरे विचारों काभी फिसी परह उपयोग किया होगा । क्योंकि उनकी विचार शैली कोई ऐसी अजोर्य थी कि उससे हमें यही पता नहीं चलता था कि उन्होने हमारेविचारोंको कहाँ स्थान दिया है, अथवा दिया भी है, या

नहीं। गोललेजी के सभी भाषणों के समय मैंहाजिर था, पर मुझे ऐसा एक भी प्रसंग याद नहीं कि जिसमे मुझे यह इच्छा हुई हो

फलों विशेषण या फल्ला विचार का उपयोग वह न करते तो “अच्छा होता |उनके विचारों की स्पष्टता, दृढता, विनय, इत्यादि पके अ्रथक परिश्रम भौर सत्यपरायणता के फल स्वरूप थे । जोहान्सवर्य मे केवल भारतीयों की एक विराट सभा भी तो होजाना जरूरी था। मेरा यह भाग्रह पहले से ही चला आरदा