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दक्षिण अ्रफ्रिका का सत्याम्रह

है किभाषण माठ्-भाषा ही में श्रयवा राष्ट्रभाषा हिन्दुस्तानी मे ही होना चाहिए। इस झाप्रह के कारण दनिण अफ्रिका के

भारतीयों के साथ मेरा अधिक सरल और निकट का सम्बन्ध हो

गया । इसलिए मेंचाहता था कि भारतीयों फी सभा में गोले भी हिन्दुस्तानी से भाषण देतोबड़ा श्रच्छा दो, किन्तु इस विपय मे उनके विचार मेंजानता था । हूटी-फूटी हिन्दी से काम चलाना

तो उन्हें पसंद हीनहीं था। श्रथथांत बह या तो मराठी मेंभाषण

देसफते थे या पंग्रेजी म। मगठी में भाषण देना उन्हे कत्रिम मालूम हुआ | यदि मराठी में बोलते भी तो गुजरातियों तथा उत्तर हिन्दुस्तान के निवासी भारतीयों केलिए उप्तका

अनुवाद करना अनिवार्य था| यदि ऐसा था तो फिर अंग्रेजी

मेंही क्‍यों न बोला जाय ? पर मेरे पाप्त एक ऐस्ती दलील थी, जिसको गोखले स्वीकार कर सकते ये। जोहाान्सबर्ग मेंकॉकए के कई मुसलमान भी वसते थे। कुछ महाराष्ट्रीय हिन्दू भी

थे। येसब गोखलेजी का मराठी भाषण सुनने के लिए पढ़े लाज्ञायित थे, भर उन लोगें ने मुझे यह भी कह रक्खा था

कि मेंशोखलेजी से मराठी मेंभाषण देने के लिए अतुरोध करूँ।

इसलिए मैंने गोखलेजी से कह्दा--“'यदि आप मराठी भेंभाषण देंगे

तो इन लोगो को बढ़ा आनन्द होगा। आप जो कुछ कहेंगे उसका

मेंहिन्दुस्तानी मेंअनुवाद करके सुना दूँगायह । सुनकर वह जोर से

खिल खिलाकर हँस पढ़े। "तेरा हिन्दुस्तानी का ज्ञान तो मैंनेअच्छी

तरह जाँच लिया, चह तुको को मुचारक दो | पर याद रख अब तुझे मराठी से अनुवाद करना होगा। भल्ला बता तो सही इतनी अच्छी

मराठी तूकईदँ सेसीख गया! मैंनेकहय--"जो हात्ञ मेरी हिन्दुस्तानी का हेबद्दी मराठी के विषय में सीसमम्तिए। मरादी में एक

अ्षर सी मैंनहीं बोल सकता |पर आप जिस विषय पर आज