पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३८६

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श्री गोखले का प्रवास

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ई| कहेंगे उसका भावार्थ मैं जरूर कह दूँगा। आप देखिएगा

कि मेंलोगों केसामने उसका उल्लट-सुलट अथ तो हरगिज नहीं कहेँगा |भाषण का अनुवाद करके सुनाने के लिए मेंऐसे लोग गेआपको श्रवश्य ही देसकता हूँ,जो भ्रच्छी तरद मराठी जानते

६ ।पर शायद आप इस प्रस्ताव को मंजूर नहीं करेंगे। इसलिए

पुकीको निवाह लीजिए, पर बोलिएगा मराठो मे। कॉंक्णो

भाइयों के साथ-साथ मुझेभी आपकी मराठी सुतने की बडी अभि-

तापा है? ' भाई अपनी ही टेक रख | अब यहाँ तेरे ही तो पात्ते खड़ा हुआ हूँ न ९अब कहीं यों थोड़े छुट्टी मिल सकती हे !”

पह कहकर उन्होंने मुझे खुश कर दिया। इसके बाद जंजीवार

तक इस तरह की प्रत्येक सभा में वह मराठी द्वी मेबोले। और खास उन्‍्द्ींका नियुक्त किया हुआ अनुवादक रद्दा ।मेरा खयाल

रैक़ि प्रत्येक सारतीय को यथां-सम्भत्र अपनी मातृ-भापा में

प्रथवा व्याकरण शुद्ध अंगरेजी की बनिस्वत व्याकरण रहित हूटी'

फूटी हिन्दी दी मे भाषण देना चाहिए । मैं कह नहीं सकता कि यह बात मेंउनको कह्दों तकसममा सका, किन्तु इतना तो मैंजरूर

कहूँगा कि मुझे प्रसज्ष करने के लिए उन्दोने दक्षिण अक्रिका मे

वोमराठी दी से भाषण दिये। मैंयह भी जान सका कि अपने भाषण के बाद उसके प्रभाव से वह खुश भी हुए। दक्षिण अफ्रिका

मेंअनेक प्रसंगों पर किये हुए अपने बताब सेगोखले नेयह बता दिया कि सिद्धान्त की कठिनाई न हो तो मनुष्य को अपने

को जरूर राज़ी रखना चाहिए । यद्द भी एक गुण है।