पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३९०

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भी गोखले फ्ा प्रवास

श्र

धोर मेंउन्‍हेंजचीबार तऊ छोड़ने केलिए गये थे । स्टीमर मे उनके लिए ऐसे भोजन थी व्यवस्था फर दी गई जो उनको मुश्रा-

फक हो। राते मेंडेलागोश्रा वे, इन्हामवेन, जंजीवार, भादि चंदरगादों पर भी उनवा पहा सम्मान किया गया |

< रास्ते में हमारे दीच जो घातें होहीं उनका पिपय भारतवर्ष

अरे उसके अति हमारा धरम ही रहता । प्रत्येक बात मे उसका कोमल भाव, सत्यपरायणता, स्वदेशामिमान चमकता था।

मैंनेदेखा कि रहीमर भे वह जो खेल खेछते उनमे भी खेतों की

बनित्वत आस्तवर्प की सेवा का भाव ही घिशेष रहता। भत्ता उनके खेश्ष मेंभी सम्पूर्णता क्‍यों न हो !

स्ीमर में शान्ति के साथ बाते करने के लिए हमे सभव मिल

हीगया। उममे उन्होंने मुझेभारतवर्ष केलिए तैयार किया |भारतवर्ष

के प्रत्येफ नेता का प्रथक्षरण करके दिखाया। पेवर्णन इतने हूबहू

थे कि मुझे बाद में उन नेताओं का जो प्रत्यक्ष अनुभव हुआ, उसमे

शोर उसके चरिश्र-चित्रण मे शायद्‌ ही फोई फक ढिखाड़े दिया। गोजलेजी के दक्षिण अफ्रिका के प्रवास मे उतके साथ मेरा जो

सम्बन्ध रहा उसके ऐसे क्रितने ही पवित्र संस्मरण है, जिनको में '

यहाँ देसकता हूँ| किन्तु सत्याम्रह के इतिद्वास केसाथ उनका फोई सम्बन्ध नहीं है । इसलिए मुझे श्रनिष्छापूर्षक अपनी कलम

को रोकना पड़ता है । जंजीषार मेंहमारा जो प्रियोग हुआ धह हम दोनों के लिए बड़ा दुखदायी था। किन्तु यह सोचकर कि

देह-धारियों केघनिष्ठ सेघनिष्ट सम्बन्ध भी अंत में हूटते हो

हैं,केलनबैंक ने और मैंने अपना समाधान किया। हस दोनोंने यह आशा की कि गोखलेजी की बाणी सत्य होओर हम दोनों एक साल के अन्दर ही भारतंवर्प जासक। पर यह असब्भव

पिद्ठ हुआ।