पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३९१

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दक्षिण श्रफ्रिका का सत्याम्रह इतना होते हुए भी गोपलेजी के दक्षिण अ्रफ्रिका के प्रवार्त

ने हमे अधिक दृठ बना दिया। युद्ध को जब अधिक रंग चढ़ा

तब इस मुलाकात का रहस्य और आवश्यकता हम और भी शष्छी तरह समझे । यदि गोबज़े दक्तिश श्रफ्रिका नहीं अति,

मत्रि-मंठत्ष से चह नहीं मिलते, तो हम तीम पौंढवाज्षे कर को अपने युद्ध का विषय ही नहीं बना सकते । यदि काला कानून रद

होते ही सत्या्रह-वंद कर दिया जाता तो तीन पौंढ के कर के लिए

हमेंनया सत्याग्रह शुरू करना पड़ता। ओर उसमें असंख्य फट उठाने पढ़ते । इतना ही नहीं, वल्कि इस धात मे भी भागी संदेह

था कि ज्ञोग उसके लिए शीघ्र तैयार होते भी या नहीं। इस कर को रद करना खतनत्र भारतीयों का कत्तेव्य था | उसको रद

कराने के लिए श्रजियाँ बगेरा सब उपाय काम में लाये जा चुके

थे । सन्‌ १८६४५ के साल से कर दिया जा रह था। चाहे कितना ही घोर दु'ख क्यों न दो किन्तु यदि वह दीर्घ कालीन हों

जाता है, तो लोग उसके आदी हो जाते हैं|फिर उन्हेंयह सममाना सहां कठिन है कि उन्‍हें उसका प्रतिकार करना चाहिए। गोखलेजी को जो वचन दिया गया उसने सत्याप्रह्ियों के मार्ग को बढ़ा सरत् बना दिया। या तो सरकार को श्रपने वचन के झन्तुसार उस कर को रद कर देना चाहिए था, या नहीं तो स्वय

चहद् वचन-भंग ही सत्याग्रह के लिए एक काफी वल्वान कारण

दो जाता ।और हुआ भी ठीक यही । सरकार ने एक साल के अंदर उस कर को रद नहीं किया ! यही नहीं बल्कि यह भी साफ-

साफ कह दिया किवद्दकररद्‌नहीं किया जा सकता |

!

इसलिए गोखते के प्रवास से द॒ग्ने तीन पौंडवाले कर को”

जे

' सत्याप्रह् के द्वारा रद कराने मे बढ़ी सहायता मिली। दूसरे, उनके उस प्रवास के कारण वह दक्षिण शअफ्रिका के प्रश्न के