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दक्षिण श्रक्रिका का सत्यामह

यह हुआ कि इस भयकर फैसले के अनुसार प्तभी विर्वा्

रद क्ररार कर दिये गये, और फलतः उस कानून की म्या के

झातुसार दत्तिण श्रफ्रिका मे परिणीत कितनी ही भारतीय ब्ियों

का दरजा धर्मपत्नी का न रद्दा । वेसरासर दाश्तायें गिनी जाने लगीं ।और आगे चलकर उनसे उसन्न होने वाली प्रजा भी पिता

की वारिस नहीं रही ।इस रिथति को म तो लिया सह सऊती थीं,

ओर न पुरुष । दक्तिण अफ्रिका मे रहनेवाले भारतीयों में इसे

भारी खलवली मच गई | अपने खभाव के अनुसार मेत सर*

कार से पूछा कि क्या वह न्यायाधीश के फैसले को छुठूरल झरतो

है, या उसके बताये कानून के श्थे को, यद्यपि बह ठीक है,अनय

कर समझ कर एक नये कानून द्वारा हिन्दू, मुसलमान, इत्यादि के धार्मिक विवाहों को कानून न मानेगी १पर इस समय सरकार क्यों इन बातों की परवा करने चली १उत्तर नकारात्मक मिला। एि. इस बात का विचार करने के लिए सत्याप्रह-मंड् बेठा कि उस फैसक्े पर अ्रपील की जाय या नहीं ? अंत मे सभी सम्य इसी

निश्वय पर पहुँचे कि ऐसे मामलों मे अपील द्वोहीनहीं सकती ।यदि अपीर्त करना अनिवांय हो तो सरकार को करनी चाहिए ।अंथंवा

यदि सरकार चाहे तो खुले तौर पर भारतोयों का पत्ता प्रहण करे; तभी भांरतीय कुछ कर सकते हूँ |इसके बिना अ्रपील करने मानी तो गोया यह मान ल्लेना हैकि फलो तोर पर हिन्दू मुत्तत-

मानों का विवाह रद हो जाता है। फिर ऐसी अपील करने पर

भी यदि हमांरी द्वार हुई तो सिवा सत्याप्रह् के दूसरा चारा हीगे रहे। इसलिए ऐसे अपमान पर हम वो अपील कर ही नहीं हक अब तो ऐसा समय उपस्थित हो गया कि शुभ चौघड़ियार्थी शुभतिथिकी राह देखना असंभव था ।ल्षियों का अपमान होजाने

पर केसे धीरनण घारण किया जा सकता था ? यह्‌ निम्वय किया