पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४१०

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द्ियाँ क्लैदमे

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'तिस चुका हूं। सत्याप्रद के युद्ध काभी उन,पर कोई विशेष

अभाव नहों पड़ा था । पर दिययों की क्रैद का तो उनपर भी जादू

का-्सा प्रभाव पड़ा | एव्य॑ उन्होंने अपने टाऊनसहाल वाल्ले भाषण

मेंकहा था कि 'म्ियों की फैद ने उनकी शांति को भंग कर दिया!” ।

अब भारतवर्ष चुप-चाप नहीं बैठा रद्द सकता था।

द्ियोंकी बहादुरी का वर्णन कहाँ तक किया जाय |सबको नैटाल

की राजधानी मॉरिट्सवर्ग मे ही रक्खा गया।यहाँ उन्हेंकष्ट भी खूब

दिया गया। उनके खान-पान की ज़रा भी चिंता नहीं डी जाती

थी। मजदूरी के स्थानपर उनको घोची का काम दिया गया। बाहर खाना मेंगाने कीसख्त मनाई थी, जो अआ्राखिर तक कायम रही।

एक चहन का ब्रत था कि वह एक खास तरद्द का भोजन द्वीकर

सकती थी। घड़ीमुश्किल सेउसेबही खुराक देनेका प्रस्ताव

मंजूर किया गया । पर चीज ऐसी मिलती कि उसे खाया ही नहीं जा सकता था |ओलिव ऑइल की विशेष आवश्यकता थी | पर

पहले तो बह दिया हो नहीं गया। और जब मिला तो पुराना और खेराब। जब क़ेटियों ने प्राथना कीकि हमारे ज़च से द्वीखांना भगवा दिया ज्ञाय, तो उमर पर उत्तर सिला “यह होटल नहीं है जो मिल्लेशा बद्दी खाना पढ़ेगा” |वह बहन जब जेल से बाहर

निकली त३ उसके शरीर मे केवल दृड्डियाँ रद गई थीं। बड़ी मुश्किल से बह कहीं वची । एक दूसरी वहन भयंकर बुखार लेकर बाहर निकली, जिसमे

थोड़े हो दिन बाद उसे परमात्मा के घर पहुँचा दिया। उसे मेंकेसे

भूत्त सकता हद? बालियामा अटद्वारद्द वर्षकीबालिका थी । | उसके

पास गया त्तव वह विस्ततर से उठ भी नहीं सकती थो । कद ऊँचा था। उसका लकडी के जैंसा शरीर डरावन मालूम होता था। मैंनेपूला--"वालियामा, जेल जाने पर पश्चात्ताप तो नहीं है!?