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दक्षिण अफ्रीका का सत्याप्रह
«वद्चात्ताप क्यों हो। अगर मुझे फिर गिरफ्तार करें तोमैं
| पुनः इसो क्षण जेल जाने को तैयार हूँ।” “पर इस मे यदि मौत आरा जाय वो ९? अभत्ते दीझावे न |देश के लिए मरना किसे न अच्छा लगेगा ” इस बात चीत के कुछ दिन धाद वालियामा की सृत्यु हो गई।
देह चला गया, पर वह वाला तो अपना नाम्र असर कर गईं। इसकी मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए स्थान-स्थान पर शोक
सभाये हुई, और कोौम ने इस पवित्र देवी का स्मारक बनने के लिए एक 'वालियामा हॉल” नामऊ भवन बनवाने का निश्चय
किया | पर कौम ने इस हॉल को बनवा कर अपने धर्म कापालन श्रभी तऊ नहीं किया। उसमे कई विध्व उपस्थित हो गये | क्ौम मेंफूट होगई। मुख्य कार्यकर्ता एक के बाद एक पहाँ से चके
गये । पर वह इंट-पेत्थर का श्मारक बने, या न भी बने, वालियामों वी सेबा का नाश नहीं हो सकता । इस सेवा का हॉल तो स्वयं अपने द्वाों से बना रकखा है। आज़ भी उसकी वह मूर्ति
कितने ही हृदयों में विराज रहो है। जहाँ तक भारतवर्ष का नाम रहेगा वहाँ तक दक्षिण अफ्रिका के इतिहास में वालियामा फानाम भी अमर रहेगा।
इन धहनों का बलिदान ब्रिशुद्ध था। के वेचारी कानूत की चारीकियों को नहीं जानती थीं। इनमे से कितनी ही को देश का ख्याल तक नहीं था। उनका देश-प्रेम तो केवल श्रद्धा हीपर निर्मर था| उनमे से कितनी ही निरत्तर थीं। अर्थात समाचार पत्र तक नहीं पढ़ सकती थीं। पर वे जानती थीं कि फौम के भान-चन्न का हरण हो रहा है |उनका जेल जाना उनका झ्ात्तनाद
था, शुद्ध यज्ञ था । ऐसी शुद्ध दार्टिक प्रार्थना द्वी को प्रग्चु सुनते
- दैं। यज्ञ की शुद्धि ही मेउसडी सफलता है। प्रभु तो भावना के