पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४१२

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स््रियाँफ़ैद/हि»

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3 भूलेहैँ। भक्ति पूर्वक अर्थात निश्वाथ बुद्धि से अर्पित की हुई फूलपत्ती या पानी भी परमात्मा को प्रिय है। उसका सप्रेम स्वीकार

फर वेउससे करोड़ों गुना फल देते दू। सुदामा के मुद्दी भर

चावल ऊ बदले मे उसकी वर्षों कीभूक भाग गई। अनेकों के

जेल जाने सेकोई फल न निकले, पर एक शुद्ध आत्मा का भेक्तियूवंक समर्पण किसी समय निष्फल नहीं हो सकता | कौन

कह सकता हैकि दक्षिण अफ्रिका में ऊिसका-किसका यज्ञ सफल

इश्रा ।पर इतना तो हम जरूर जानते हैंकि वालियामा का वल्िदान

अचश्य ही सफत्न हुआ ? बहनों का यज्ञ तो जरूर हीसफल हुआ।

. खद्देश-यज्ञ में,जगत-यज्ञ मे असंख्य आत्मात्रों काबलिदान दिया गया है,दिया जञारहा है. और दिया जायगा |यही ठीक भी है।

फैयोंकि कोई नहीं जानता कि प्रण॑रुपेण शुद्ध कौन हे। पर सत्या-

पहीइतना तो जरूर जानते है किउनमे से यदि एक भी शुद्ध

हेगा तो उस का यज्ञ फल्नोत्पत्ति केलिए काफी है। धथ्बी सत्य के पैल पर टिकी हुई है। 'असतः--“अमत्य के मानी हैं “नहीं

मत-सत्य! अर्थात “है” जहाँ अतत अर्थात्‌ अस्तित्व ही नहीं

हैं,उसकी सफल्ञता कैसे होसकती है? और जो सतु-अर्थात्‌

है! उसका नाश कौन कर सकता है। बस इसी में सत्याप्रह का समत्त शात्र समाचिष्ट है ।