मजदूरों को धारा
१३६
ा काम “बसा है।” मैंने उत्तर दिया, "भाई तुमने वहुत अ्रच्छ के चल कोगों किया, इसको मेंसचवी बहादुरी कदता हैँ;तुम जैसे पर ही हम जीतेंगे ।!
मैंनेइस तरह उसे मुच्रारिक्तरादी तो दी, पर दिल में सोचा, | भार
यदि यही हाल अनेक का हुआ वो हड़ताल कंसे चलेगी
बात की फरे! की शत छोड़ दी जाय, वो फरियाद फिर और किप्त लिए पानी, बत्ती
जानें के सालिक यदि हड़ताल फरने वालों के
कहाँ श्यादि सुविधा न भो रहने दे, तोइसमे फरियाद के लिए रह तक कब में स्थिति इस स्थान रह जाता है? जो हो, आविर ज्ञोग ए)
सकते हैं. मुझेअवश्य ही कोई-न-कोई उपाय सोच लेताकोटचाहिजायें क्योंकि लोग लाचार होकर फिर अपने अपने काम पर हाए इस की वनिस्वत तो ठीक यही होगा कि वे अभी से अपनी
सेयह कबूल कर लेऔर काम पर लौट जायें । पर लोग मेरे मुंदमाक्ति फों उन्हें बचा ही एक केवल मार्ग सलाह कभी नहीं सुनेंगे। च हुए कमरे छोड़ देना चाहिए । श्रथोत 'हिजरत' कर देनी' चाहिए
।
से हजारों होने मज़दूर पांच-पचीस नहीं, सेकडों थे । सैकड़ोंलाऊँ) उसके खाने"
न कहां से मेभी देरनहीं थी। इसके लिए मैंमका तो पैसे माँगना दी नहीं से ष पीने का क्या प्रबंध करूं !भारतबर पैसों की वर्षो कोअभी जरा देर थी। इधर
था। बचें होने चाही
इतने दर गये थेकिजाहिरा दक्षिण अफ्रीका के भारतोय व्यापारी र नहीं थे ।उनका
लिए हैथा तौर पर थे मेरी कोई सहायता करने के े गोरों कै साथ भी था दूमर और / ज्यापार तो खान के मालिकों
े थे ( मैंजब-कमी इसलिए खुल्लम खुल्ता वे मुझसे केसे मिल सकत पर इस बार दूसरी जगद_
ू सल जाता तब उन्हींकेवहा ठहवरता था। न्यकें े उनकाभागेसरतकर५९+ पर उतरनेकालिख करकेस्वर्यमैंमदो