पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४०

दृष्तिण अफ्रीका का सत्याग्रह

पहले मेंयह बतला चुका हूँकि टरान्सवालसे जो बहनें आई थीं, बेद्राविड प्रान्त की थीं। वे एक द्राविड कुटुम्तर के यहाँ ठदरी थीं जो ईसाई था । यह छुटुन्त मंमीशे दर्ज का था। उसके एक

छोटासा जमीन का टुकडा और दो तीन कमरे घात्ना एक छोटा" सा मकान था । इन्हीं के यहाँ ठहरने का मैंने भी निम्भय किया।

मालिक मकान का नाम लेभरस था। गरीब को किसका ढर हो सकता

है । भे सब मूलत, गिरमिटिया माता-पिता फो प्रज्ञा थे, इसलिए

उतको और उनके सम्बन्धियों को भी तीन पौंड बाला कर देना

पढ़ता था । गिरमिटियाश्रों के दुःखों से तो वे पूरी तरह परिचित थे | इसलिए उनऊे साथ उनकी सहानुभूति होना भी स्वाभाविक

हो था। इस झुदुम्ब नेमेरा सह स्वागत क्रिया । मेरा स्वागत करना

मित्रों के लिए झामान काम तो कमी रह। ही नहीं है; परन्तु इस बार

तो वह और भी मुश्किल था। मेरा स्वागत करना मानों प्त्यक्

दरिद्रता, निर्धनता का स्वागत करना और शायद जैबको भी निमन्त्रण देना था। इस स्थिति में शायद ही कोई धनिक व्यापारी

अपने को इस खतरे भें छालने के लिए तैयार होता, और अपनी

तथा उत्तकी परिस्थिति को इन तरह समम ल्ञेने पर भी उन्हें ऐसी

विकट परिस्थिति में ढालना भेरे लिए स्वंधा अनुचित था। चेचारे लेकरस को थोढ़ासा वेतन ही खोने काडर था, भौर वह ्से वरदाश्त भी कर सकता था। इसे कोई कैद करना चाहे वो भत्ते ही करे, पर अपने सेभी गरीब गिरमिटियाओं के दुःखों को कैसे चुपचाप सह सकताथा ९ उसने अपने यहां इन गिरमिटियाशों

फी सहायता के लिए आई हुईबहनें को अपनी आँखों जेल में जातेदेवा

था। उप्ते मालूम हुआ कि उनके प्रति उसका भी दे ग क्तव्य है, इसीलिए उसने मेरा भीस्वीकार फिया है। स्वीकार « किया पर अपना सर्वत्व भी अर्पित कर दिया । क्योंकि उसके यहां