पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४१६

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सज़दूरों की धारा १४! मेरेजाने के वाद उसका घर एक धर्मशाला बन गया | सेकडों भादमी और हर तरह के आदमी आते जत्ते थे। उसके मकान केआस-पास की जमीन आदमियों से खास भर गई। चौत्रीसों धंदेउसकेमकान पर रसोई होती रहती थी, जिसमे उसकी धर्मपत्ली नेतनतोड़ मिहनतत की । और इतने पर भी जब कभी देखिए, पेव वेदोनों हँसमुद्न दी नज़र आते थे |उनकी मुलाक्ृति में मैंने अग्रतज्ञता नहीं देखी । पर लेंकरस भत्ना कहीं सैकड़ों मज़दू्गें कोखिला सकता था ९

सजदूरों को सैंने समा दिया कि उन्हे इस हडताल थो हमेशा कने वाली हृडताल समझ कर अपने अपने साल्षिक के क्रोपडों

की भी हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए | उनके पास जो चीजे

'पेचने ज्ञायक हों उन्हें चेच दिया जाय । बाकी असबाव फो वे अपनी खोलियों भे भर कर रख दें।मालिक उसे द्वाथ नहीं लगावेगा

शायद अधिक दुश्मनी ठानने के लिए यदि वह उसे फेंक भी दे उन्हें यह बरदाश्त कर लेना चाहिए | मेरे पास वे अपने पह-

केकपड़ों और ओढ़ने के कम्पल्लों केसिवा ओर 8छ नहीं

शोर्य। जहा तक हड़ताल टिकेगी और जबतक वे जेल से बाहर रहेगें तबतक उन्हीं के साथ रहने ओर उन्हीं के साथ साथ खाने

पीने का अपना निश्चय भी मैंने उन्हे सुना दिया। इन शर्तों' पर

पद देखानों से बाहर निकलते हों, तभी और केवल तभी, वे टिक सकेंगे और उनकी जीत भी हो सकेगी। ऐसा करने की जिसे हिस्मत न्ञ हो वह भत्ते ही अपनी नौकरी पर कौट जाय | और पस्त तरह जो ल्लौट जावे, उसका कोई तिरस्कार भी न करे, भर

गे कोई उसे सतावे !मुझे ऐसा एक भी उदाहरण याद नहीं जिसमें

रंग बातोंका किसोने इनकार किया हो । मैंने उन्हें यह कह्दा उसी स हिज़रत करने वाले घर -त्यागियों की कतारें आने लगीं।