पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४१७

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श्र

दक्षिण अफ्रीका का सत्यामद

सभी अपने अपने दधीती-ब5चों को लेकर अपने सिर पर यठडियां

रख कर आने लगे |मेरे सामने तो केवल ठहदरने भर के लिये ज़मीन थी। सौभाग्यवश इन दिनो न तो कोई जाड़ा याभोर न वारिश ही थी ।

मेरा विश्वास था कि खाने-पीने की व्यवस्था के विपय मे व्यापारी वर्ग पीछे कदम नहीं हटावेगा ।न्यूकंस के व्यापारियों

ने दाल भौर चावल के वोरिये और खाना पकाने के लिए बर्तन भी भेज दिए। अन्य गावों से भी दाल, चावल सब्जी, मसाले चरौरा की वर्षा दोने क्ृगी | मेंसोचता था उससे कहीं अधिक ये

चीज़ मेरे पास आने क्षय गईं |जेल जाने के लिए भले दी सब

चेयार नहों पर सहामुभूति तो सभी रख सकते थे |सभी अपनी श्रपनी शक्ति के अनुसार सद्दायता देने केलिए तैयार ये।बिन की हालत कुछ देने दिलाने लायक नहीं थी उन्होंते शारीरिक मिदनत द्वारा कौम के इस यज्ञ मेंसहायता की। इन अपइ-अजात मनुष्यों की संभालने केलिए सममद्गार-होशियार स्वयं्तेवकों

थी आवश्यकता थी | वे भी मिलते गये, और उन्होंने अमूल्य सहायता पी । उनमें सेअधिकादा'तो गिरफ्तार भी छर लिए गये।

इस तरह संभी ने थथाशक्ति सद्दायता की, जिससे हमारा मार्ग सरल होगया ।

_मलु॒प्यों शी संस्या बढ़ने लगी। इतने बड़े और प्रति क्षण बने वाले जनममुदाय को एक ही स्थान पर बिना किसी उद्योग के रत छोड़ना ययपि अशस्‍्य नहीं तो भयानक तो जहर ही था। मलोत्मग बगैराफ्री उनकी भादतें तो अच्छी होती ही नहीं ।,

न्‍म समुदाय में पितने ही ऐम थे जो जुर्म फरके जेल हो भाये थे। पई तोसन के अपराधी भी ये । पई चोरी फाने के

पर से जेलयात्रा परे छूट फर आये हुए थे ।हडताल फरने अप या