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दक्तिण अफ्रीका का सत्याग्रह

महल कर गये । हृदय को कठोर करने के सिवा मेरे पास झौर

कोई उपाय ही वहीं था। मैंने उन्हें कह दिया कि जो वापस खानों पर जाना चाहते हों वे जासकते हैँ |पर ल्लौट जाने को कोई तैयार नहीं थे। जो पंगु थे उन्हेंदून से भेजने का निश्चय

हुआ । शेप सव चार्स्‌ टाऊन तक पैदल चलने को तैयार हो गये।

रात्ता दो दिन मे तय करना था । इससे तो सभी प्रसन्न हो गये । लोगों ने सोचा कि वेचारे लेंकरस कुट्ुग्य को भी कुछ विश्ान्ति भिलेगी। इधर न्यूकंसल के गोरों को हैज को भय था ।इसक्िए वे

जो कुछ इन्तज़ाम करने वाले थेउससे बह मुक्त दो गये, भौर हम भी तो उत्तके उस इन्तज़ाम के भय से मुक्त होगये।

कूच की तैयारी कर ही रहे थे कि खान के मालिकों का निम-

न्त्रण श्राया | मैं डरवन पहुँचा। पर अब यह अगले अकरण में।

कित्सा