पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४२

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भारतीयों काआगमन

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गन्ना, चाय, काफ़ी आदि की खेदो करके बहुत फायदा उठा रहे थे। गन्नो सेशक्कर बनाकर ये इतने थोड़े समय मेंदी यहाँ को

आवश्यकताओं को पूरा करने लग गये कि दक्षिण-अफ्रीका में

सबको अचंभा हुआ। अपने मुनाफे की रकम से उन्होने बढ़े-बढ़े

मदहत्ञ चनाये और “जंगल मे मंगल” कर दिया । ऐसे समय यदि सेठ अबूबकर जैसा चतुर व्यापारी उनके बीच में आ.बसे तो उन्हे वह क्‍यों न खटके !फिर इनको तो एक अंग्रेज भी आ मिला ।अवूवकर सेठ ने अपना व्यापार फैज्ञाया, जमीन खरीदी ।

उनकी जत्ममूमि पोरबन्दर और उप्तके आस-आस के गाँवों तक यह बात फैज्ञ गयो कि सेठ साहब आज-कन्न खूब मुनाफा कमा रे हैं।शीघ्र हो दूसरे मेमन नेटाल पहुँचे। उनके पीछे-पोछे

सूरत के बहोरे भी चक्ते। बहोरो के साथ-साथ महेता ( मुनोम ) लोग तो अवश्य द्वोने चाहिएँ। अतः गुजणात-काठियाबाड़ के

हिन्दूमद्देता भी गये !

इस तरह नेटाज मे अब दो श्रेणी के भारतीय हो गये--(१)

स्व॒तन्त्र व्यापारी और उत्तका स्व॒तन्त्र अनुचर-समुदाय और (२) गिरमिटिया । धीरे-घोरे गिरमिदियों के बाज्-बच्चे हुए। यद्यपि

, कानून के अनुसार उनको संतान मजदूरी करने के लिए बँघी हुईन थी, तथापि इसपर कानून की कठोर धाराशों का अंकुश ठो अवश्य था। ग़ुल्ञामकीसंतान गुलामी के लांछुन से कीसे बची रह ध्षकती हे? गिरमिटिये यहाँसे पाँच सात्न केइकरार

पर जाते थे। पाँच साल के वाद के मजदूरी करने पर बाध्य न थे। स्वतन्त्र रूप से सजदूरी अयवा व्यापार करके नेटाल के स्थायी निवासी होने का उन्हें हक था । कितनों ही से

इस हक का उपयोग किया और अन्य कितने हो फिर भारत

को लौट आये ।जो नेदात्ञ में दीरहे वे 'फ्रों इख्हियन्स”