पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४२५

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--_ उत्तिण श्रफ्रीका का सागर

लिया, और मुझे पूरी शांति हुई। हमर मनुष्यों के द्वारा इन नियमों कापालन कराना मदद कठिन है.। पर उन लोगों नेओर मेरे साथियों ने मेरे लिएईस

काम को झासान कर ढिया |मेरा यद्द हमेशा का अतुभव है कि

सेवक हुस्स न करे! वह्कि सेवा ही करे तो बहुत इछ काम ही सकता है। सेवक यदि अपने शरीर को झरा भी कष्ट देगा दूसरे लोग मी ऐसा ही करने लग जावेगे। इस बाव की रो

अतुभव मुझेउस छावनी मेंआप्त हुआ। मैं और मेरे साथी

माहना-बुहारना, सैज्ञा उठाकर फरेकना आदि काम करते हुए छये भी नहीं हिचकते थे |इसलिए दूसरे लोग उसी काम की खुशी र खुशी करने जग जाते थे |यहि हम ऐसा न करते दो आववि

हुल्ृमत किस पर करते? सभी सरदार वन कर दूसरों पर हुकूमत करनेलगतेतो कुछु भी काम नहोता । पर जब खय्य सरदार ही सेवक वन जाता हैतब तो दूमरे लोग सददारी का दावा किस तरह कर सकतेहैं

साथियों में से क्रैहनवेक्र आ पहुंचे थे।मिस स्तेशीन भी हाजिर होगई थीं। इस महिला की मिहनत, विंता-शीलवा भौर

प्रामाणिकता की जितनी तारीफ की जाय थोड़ी ही है.। भारतीय

में दो सिफ खर्गीय पी के.नायडू और क्रिस्टॉफर के नाम दी इस

समय याद श्रारदे हूं।झौर भाई भी थे,जिन्होंने खूब मिहनत कर के महायता की थी ।

भोजन में भाव और दाल दी जाती थी। सब्दी भी लू

म्रि्ञ जाती यी ।पर उसे अत्षग पछाने फे लिए एक तो वतन नई

थे,दमरे उतना समय भी तो चाहिए। चौघीसों घंटे खाना पकत

रहवा । क्योंकि मूखेन्यास्ते आदमी आने ही रहते ये। न्यू केसर

मेंकिसी के ठदृग्ते कीझहुरत ही नहीं थी। रास्ता सभी के